संदेश

हिंदी के पुरोधा

मैं एक हिंदीप्रेमी व लेखक (कुछ हद तक) के नाते पूरे   भारत व उसके   नागरिकों से आह्वान करना चाहता हूँ कि हिंदी सहित हमारी सभी भाषायें मातृतुल्य हैं   और सर्वजनों को इनका सम्मान सदैव करना ही चाहिए। मैं एक भाषा के अन्य पर अधिपत्य   को स्वीकारने के पक्ष में नहीं हूँ, किंतु हमें यह भी समझना होगा कि जबतक हमारी   भाषाओं के बीच आपसी समन्वय स्थापित नहीं होगा, तबतक हम भाषाई विविधाताओं को   स्वीकारने में हम असमर्थ साबित होते रहेंगे। मैं एक भाषाप्रेमी के तौर पर भी सभी को आशवस्त करना चाहता हूँ कि   हमारी भाषाओं के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलना चाहिए और ऐसा किसी   राजनीतिक व अराजनीतिक हस्तक्षेप के बगैर ही मुमकिन है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने   से हमारी भाषाओं की विविधताओं में वृद्धि ही होगी और वे शाब्दिक रूप से भी समर्थवती   साबित होंगी। हमारे यहाँ का एक धड़ा हमेशा यही साबित करने में लगा रहता है कि हमारी   भाषाओं को उनके रहमोकरम पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि इन तथाकथितों का मानना है कि   ये जनभाषाएं किसी भी रूप में इनके जागीर हैं और अपने पूर्वजों की संपत्ति की तरह   उनकी पोटली में ये
कुमारवाणी पर आपका स्वागत है।

मई का आखिरी संदेश...शायद

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यह एक तरह से मई का मेरा आखिरी कर्म है।  इसके बाद मैं छः महीने की छुट्टी पर जा रहा हूँ!!! चिट्ठे में भावी बदलाव जारी रहेंगे और यथावत् हिंदी व शेष भाषाओं हेतु मार्गदर्शन होता रहेगा लेकिन मुझे अभी भी बहुत कुछ सीखना है, मसलन टंकण- तमिल, तेलगु, कन्नड़, आदि ; मुझे इन भाषाओं (राजस्थानी, गुजराती, मराठी, बोड़ो, असमिया, विष्णुप्रिया, तुलु, ओड़िया, आदि) में पारंगत भी होना है और इसके लिये विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं, ताकि अतिशीघ्र इन्हें अपना बना सकूँ। इसके अलावा जो चीज सबसे महत्वपूर्ण है, वह है मेरी जिंदगी और मेरी जिंदगी में आनेवाले मोड़। मैं इस परियोजना का द्योतक हूँ और सदा रहूँगा लेकिन इससे मैं कुछ अर्थ प्राप्त करने में असफल रहा हूँ। हाँ, कुछ प्रकल्प हैं, जिनसे अर्थ आ सकता है लेकिन तब भी मैं उनका इंतजार करने में अक्षम साबित हो रहा हूँ। मैं पहले अपनी जिंदगी सँवारकर एक मुकाम तक पहुँचना चाहता हूँ, ताकि फिर से इसपर अपनी ऊर्जा खपा सकूँ। मैं इस काम के लिये पिछले 2007 से सोच रहा था और पिछले डेढ़-दो सालों में मैंने बहुत कुछ हासिल भी किया है लेकिन वे सब मेरा पेट नहीं भर सकती है। मैं

हिंदी की मानक वाक्यरचना का रामबाण

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हिंदी का मानकीकरण जितना आवश्यक है , उससे अधिक उसके शब्दों व उसके प्रयोगों को परिभाषित करना आवश्यक है। भूमंडलीकरण के दौर में कोई भी भाषा , चाहे उसका साहित्य कितना भी समृद्ध हो या फिर उसके रचनाकार कितने भी योग्य हो , तभी अपनी अस्तित्व बनाये रखती है , जब उसकी शब्दरचना पर कोई अनावश्यक आघात न हो। लेकिन हमारी हिंदी के साथ एक उलटी गंगा बह रही है। यहाँ सभी ने अप्राधिकृत रूप से हिंदी शब्दरचना को मनचाहा स्वरूप दे दिया है और इसके कारण ऐसी दुष्कृतियाँ देखने में मिलती हैं जो न केवल त्रुटिपूर्ण होती है , बल्कि पाठकों के सामने भी गलत प्रारूप प्रस्तुत करके उन्हें भी दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया जाता है। हमें इसके साथ यह भी समझने-बूझने को तैयार रहना पड़ेगा कि हरियाणवी, राजस्थानी, कुमाऊँनी, भोजपुरी, मैथिली, वज्जिका, आदि अनेक भाषा प्रारूप/बोलियाँ/शैलियाँ हैं, जिनमें भेद करना समय की जरूरत है। इनके शब्द भले ही एक होते हों लेकिन शब्दोपयोग तो सदैव एक नहीं रहते हैं। मैं मानने को तैयार हूँ कि मैं उन सैकड़ों में खुद को शामिल कर रहा हूँ लेकिन मेरे पास उपाय ही क्या है। मैं यहाँ कोई समाजसेवा

उस्ताद होटल- एक फिल्म, कई परतें

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उस्ताद होटल एक ऐसी फिल्म है जो सही मायने में आपको भोजन की असली अहमियत बताती है।  उस्ताद होटल 2012 में आयी एक  मलयाली फिल्म है जिसके मुख्य किरदार दुल्कार सलमान व नित्या मेनन हैं। यह एक बेहतरीन फिल्म है जो युवा फैजल (उपनाम : फैजी) की जिंदगी के बारीक पहलुओं को उजागर करती है। वह पिता की इच्छा के विरूद्ध स्विट्जरलैंड में शेफ की पढ़ाई करता है और यह बात जब उसके पिता को पता चलती है, तब उसके पिता उसका पारपत्र (अंग्रेजी : पासपोर्ट) छीन लेते हैं, ताकि वो इंगलैंड में नौकरी न कर सके। इसके बाद फैजी कालीकट आकर अपने दादाजी के रेस्त्रां में शेफ का काम करने लगता है। यह आलेख इस फिल्म की समीक्षा करने या मेरे लेखन जीवन  में पतंग उड़ाने के लिये नहीं लिखा गया है। मैं सार्वजनिक व निजी जीवन में फिल्मों के सामाजिक विकास में सक्रिय योगदान के पक्ष में रहता है। मेरी यही चाहत मुझे मेरे अनुक्षेत्र से बाहर निकलने का मौका भी देती है और इसके कारण मैं कई भाषिक फिल्में देख पाता हूँ जो हिंदी में नहीं बनायी जाती है। इस फिल्म के एक दृश्य में जब  नारायणन कृष्णन  ( तमिल विकिपृष्ठ )  फैजी को बताते हैं कि ए

100 Most Effective SEO Strategies

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यहाँ मानक हिंदी के संहितानुसार कुछ त्रुटियाँ हैं, जिन्हें सुधारने का काम प्रगति पर है। आपसे सकारात्मक सहयोग अपेक्षित है। अगर आप यहाँ किसी असुविधा से दो-चार होते हैं और उसकी सूचना हमें देना चाहते हैं, तो कृपया संपर्क प्रपत्र के जरिये अपनी व्यथा जाहिर कीजिये। हम यथाशीघ्र आपकी पृच्छा का उचित जवाब देने की चेष्टा करेंगे।