मई का आखिरी संदेश...शायद
यह एक तरह से मई का मेरा आखिरी कर्म है।
इसके बाद मैं छः महीने की छुट्टी पर जा रहा हूँ!!!
चिट्ठे में भावी बदलाव जारी
रहेंगे और यथावत् हिंदी व शेष भाषाओं हेतु मार्गदर्शन होता रहेगा लेकिन मुझे अभी
भी बहुत कुछ सीखना है, मसलन टंकण- तमिल, तेलगु, कन्नड़, आदि; मुझे इन भाषाओं (राजस्थानी, गुजराती, मराठी, बोड़ो,
असमिया, विष्णुप्रिया, तुलु, ओड़िया, आदि) में पारंगत भी होना है और इसके लिये
विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं, ताकि अतिशीघ्र इन्हें अपना बना सकूँ।
इसके अलावा जो चीज सबसे महत्वपूर्ण
है, वह है मेरी जिंदगी और मेरी जिंदगी में आनेवाले मोड़। मैं इस परियोजना का
द्योतक हूँ और सदा रहूँगा लेकिन इससे मैं कुछ अर्थ प्राप्त करने में असफल रहा हूँ।
हाँ, कुछ प्रकल्प हैं, जिनसे अर्थ आ सकता है लेकिन तब भी मैं उनका इंतजार करने में
अक्षम साबित हो रहा हूँ।
मैं पहले अपनी जिंदगी सँवारकर एक
मुकाम तक पहुँचना चाहता हूँ, ताकि फिर से इसपर अपनी ऊर्जा खपा सकूँ। मैं इस काम के
लिये पिछले 2007 से सोच रहा था और पिछले डेढ़-दो सालों में मैंने बहुत कुछ हासिल
भी किया है लेकिन वे सब मेरा पेट नहीं भर सकती है।
मैं चाहूँ, तो कोई सरकारी संस्थान से
जुड़कर यही काम कर सकता हूँ लेकिन पता नहीं, मैं उन संस्थाओं से नहीं जुड़ना चाहता
हूँ। मैं उनसे कन्नी काटना चाहता हूँ। मुझे हमेशा लगता है कि वे सभी निकम्मे हैं
और वे कुछ भी करने के लायक नहीं हैं। मैं उनकी बुराई नहीं कर रहा हूँ, बल्कि एक
आईना लिये बैठा हुआ हूँ जो मुझे सदैव यही दिखाती है कि इनकी अकर्मण्यता ने ही
हिंदी को पिंजरे का तोता बनाकर रखा है और जबतक ये लोग इस पिंजरे की चारदीवारी से
दूर नहीं हटेंगे, तबतक मैं वहाँ पहुँचने में नाकामयाब ही रहूँगा।
...
....
.....
मैं रूकता हूँ। हाँ, मैं रूक रहा हूँ।
मैं अपने शब्द वापस लेने में माहिर नहीं हूँ क्योंकि मैं कुछ भी लिखता हूँ, तो
उन्हें सच मानकर या सच्चाई से प्रेरित मानकर ही लिखता हूँ।
लेकिन यहाँ मैंने कुछ ऐसा लिखा जो
मुझे पहले समझ में आना चाहिये था। मैंने अबतक इन्हें एक अनाम बच्चे की तरह सिर्फ
सुझाव देने की कोशिश किया लेकिन मैं तब नासमझ था क्योंकि हमारी व्यवस्था के हिसाब
से इन्हें हथौड़े अधिप्रिय हैं।
मैं अब इन संस्थाओं में आधिकारिक
प्रविष्टि की तैयारी करूँगा, ताकि मेरे काम को अतिशीघ्र सराहकर इन्हें जल्द ही
किसी परियोजना का हिस्सा बनाकर पुस्तक निर्माण, आलेखन, प्रतिवेदन, प्रौद्योगिकी पर
जल्द ही काम शुरु हो सकेंगे।
मैं तब आपसे मिलने की चेष्टा करूँगा,
वो भी एक नये कलेवर के साथ!!!
इसके अलावा मैं एक चीज स्पष्ट कर देना
चाहता हूँ कि मैं शब्दनिर्माण यथावत् जारी रखूँगा, ताकि शब्ददुरूहता मेरा पीछा
छोड़ने में सफल रह सके। मैंने अभीतक कितने शब्द बनाये हैं या उनका प्राधिकृत उपयोग
कितना हो पायेगा, ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना स्पष्ट है कि आगामी समय
बहुत रोचक होनेवाला है।
मैं अभी यह भी घोषणा करनेवाला हूँ कि
हिंदी के प्रेमचंद पृष्ठ का नाम बदलकर भारती के प्रेमचंद हो गया है, वैसे पृष्ठांत में यह लिखा हुआ है कि यह इससे पूर्व हिंदी के प्रेमचंद के नाम से उल्लेखित था लेकिन
भाषा सुप्रवाहिता व मित्रत्व को सुगम स्वरूप देने के लिये इसका नाम बदला गया है।
अभी इस पृष्ठ
में एक आलेख है जो मेरे चिट्ठे को दो मिनट-पाठन में ही समझाने की चेष्टा करता है
लेकिन इसकी सामग्री को बदला जायेगा।
और उसके बदले एक नये आलेख हिंदी के पुरोधा को तैयार किया गया है जो हमारे इस सजाल का मुख्यंश आलेख बन चुका है और हमारे सभी उपयोक्ताओं को यह पृष्ठ सदा दिखेगा।*
और कुछ दिनों बाद यहाँ (भारती के प्रेमचंद- पृष्ठ) उनलोगों का
नाम सम्मिलित होगा जो हिंदी और हमारी सभी भारतीय भाषाओं के लिये सक्रिय योगदान दे
रहे हैं।
इसके अलावा इनकी संक्षिप्त जीवनी पर भी काम आगे बढ़ सकता है लेकिन अभी
अनिश्चितता के भँवर दिख रहे हैं।
यहाँ हिंदी लेखन में बहुत लाल निशान
आते हैं और उनका भी तोड़ निकाला जायेगा, ताकि इनका नामोनिशान मिट जाये।
मैं भारतीय भाषाओं हेतु एक कार्यक्रमण
भाषा (सांगणिक) के विकास पर भी काम करने को इच्छुक हूँ। हिंदवी (हिंदी सहित पाँच
भाषाओं पर उपलब्ध) व एझिल (तमिल पर) पर नये सिरे से काम होगा, ताकि इनकी सुगमता को
बढ़ाया जा सके और उनकी इस्तेमाल को विश्वस्तरीय मंच प्रदत्त हो जाये।
कल बंगला तिथि (बंगाब्द- বঙ্গাব্দ) से हमारे स्वर्गीय
रवींद्रनाथ टैगोरजी की जन्मतिथि थी।
उनके जैसी शख्सियत विरले ही मिलती है लेकिन चोक्खा होती है।
मैं इस उपरोक्त उक्ति को चरितार्थ करना चाहता हूँ।
खैर, कुछ दिनों बाद मिलेंगे।
मैं कुमारवाणी या उससे जुड़ी कोई भी काम नहीं छोड़ रहा हूँ और द्विमासिक प्रकाशन पर विचाररत हूँ। यह ऐसी कर्म है जिसके अधिक परत सदा पर्दे के पीछे ही कार्य करेंगे और बाहर केवल 5-10 प्रतिशत ही दिखेगा क्योंकि यह अंततः एक बौद्धिक प्रक्रिया है।
आपका दिन शुभ रहे।
कुमार
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