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हिंदी या अंग्रेजी क्या चाहिए???


आज हम सभी जानते हैं कि हिंदी में विज्ञानी शब्दों की कोई कमी नहीं है और नित नए हिंदी सजाल भी अंतर्जाल पर आ रहे हैं। इसके साथ भारत सरकार ने भी बकायदा हिंदी अंतर्जाल हेतु .भारत सहित 9 अनुक्षेत्रों को जारी कर दिया है।

मेरा मानना है कि जब हम सभी भारतीय अपनी मातृभाषा हिंदी में शिक्षार्जन करेंगे, हमारे देश की तरक्की में वृद्धि जरूर होगी, क्योंकि ये तो हम सभी जानते हैं कि हमारे अधिसंख्य लोग अंग्रेजी नहीं जानते है और इसमें इनका कोई कसूर भी नहीं है। हमें अपनी भाषा में पढ़ने से जिस संस्कृति का भान होगा, वह विशुद्ध भारतीय ही होगी।

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आज किसी गाँव में कोई ऐसा चिकित्सक नहीं मिलता, जो गाँववालों की सेवा करना चाहता हो, उसे तो सिर्फ पैसों से मतलब होता है, जो सिर्फ शहरों में ही संभव है। यद्यपि हमारी सरकार इनलोगों को अच्छी तनख्वाह देती है, लेकिन इनलोगों को तो अंग्रेजी शैली की जिंदगी पसंद है, जो उन्हें गाँवों में मिलने से रही।
जब हम हिंदी में अपनी बात कहने में समर्थ है, तो फिर हमलोग एक विदेशज की सहायता क्यों लेते है। जब 1854 में लार्ड मैकाले व चार्ल्स वुड ने भारतीय पाठ्यक्रम तैयार किया था, तब यही सोचकर तैयार किया गया था कि अंग्रेज भले ही इस देश से चले जायें, लेकिन उनकी अंग्रेजियत हमेशा भारतीयों के डीएनए में घुली रहेगी, जो एक विषाणु की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीयों में फैलती रहेगी।
मुझे खेद होकर यह कहना पड़ रहा है कि मैं भी अन्यों की तरह अंग्रेजी घोड़े पर सवार हो चुका हूँ, जबकि मुझे हिंदुस्तानी घोड़े का दस साल का अनुभव है, यद्यपि मैं अंग्रेजी घोड़े की सवारी कर रहा हूँ, लेकिन मैं इस विदेशी घोड़े को छोड़ सकने में असमर्थ हूँ।
मुझे आज तक यह समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अंग्रेजी माध्यम में क्यों पढ़ रहा हूँ???, क्या अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने से अधिक सुविधाएँ मिलती है या फिर अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा ग्रहण करने से हमारे सम्मान में वृद्धि होती है?
भाषा कोई भी हो, लेकिन अपनी मातृभाषा जैसी कोई नहीं होती, मातृ का मतलब ही माँ होता है। जब एक शिशु जन्म लेने के बाद पहली दफा जिस भाषा को सुनता है, वह भाषा उसकी मातृभाषा होती है। जैसी हमारी माँ बिना किसी स्वार्थ के हमें प्यार करती है, उसी तरह हमारी भाषाएँ भी हमें बेइंतहा प्यार करती है और प्यार बाँटना भी सिखाती है। हम इसी कारण अपनी मातृभाषा में किसी के साथ भी सहजता से बातचीत करते हैं।
मैं अपने खुद का अनुभव आपको बताना चाहता हूँ कि मैं हिंदी में वार्तालाप को प्रमुखता देता हूँ, यद्यपि मुझे अंग्रेजी अच्छी तरह से आती है, लेकिन जब मैं हिंदी में अन्यों के साथ बातचीत करता हूँ, तो उस समय मुझे एक विशेष अनुभूति होती है, जो चीनी की मिठास के जैसे मेरे पूरे अंतर्मन में घुल जाती है।
आज वह समय नहीं है, जब हम अंग्रेजी को पूरी तरह नकार सकते हैं लेकिन एक सीमा तो होना चाहिए कि हमारी भाषाओं को उससे अधिक महत्व मिल सके। मुझे माफ कीजिएगा लेकिन अंग्रेजी मेरे लिए अभी भी विदेशी है और हमेशा विदेशी ही रहेगी। मैं अंग्रेजी से चिढ़ता नहीं हूँ लेकिन हमारे कुछ अंग्रेजीदाँ ऐसे नजर आते हैं कि उनके मात्र अंग्रेजीज्ञान ने उन्हें इतना महान बना दिया है कि बाकी सभी भाषिक तो उन्हें गवार ही नजर आते हैं।

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