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राजपूत इसलिए नहीं हारे थे


आज मैं आपको एक सच्ची घटना के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके किरदार हमारे राजपूत हैं। मैंने दो दिन पहले फेसबुक पर उद्भारित छवि देखा जिसमें लिखा था कि राजपूत कभी कोई युद्ध क्यों नहीं जीत पाए और इस सवाल ने मुझे झकझोर दिया कि सवाल तो सही है लेकिन इसका वाजिब कारण क्या होगा और इस आलेख के द्वारा मैंने उसी सवाल का जवाब देने का कोशिश किया है।
हमें वैसे तो राजपूतों के इतिहास के बारे में ज्यादा नहीं पढ़ाया गया है लेकिन हमारे इतिहास किताबों में एक चीज का जिक्र जरूर रहता था कि उन्होंने कभी गुलामी या दबाव मंजूर नहीं किया और विरोधियों से लोहे लिए। वे वतन पर न्यौछावर हो गए और राज्य की शान के लिए अपनी जान तक लड़ते रहे। हमें उन किताबों में यह भी बताया गया कि राजपूत शूरवीर योद्धा थे और युद्ध में उनका कोई सानी नहीं था लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है कि अगर वे इतने ही बहादुर थे, तो वे क्यों इतने युद्ध हारे थे और उनकी रानियों को क्यों जौहर होना पड़ा।
मैं वैसे तो इतिहास का शौकीन रहा हूँ और राजपूतों के युद्धों व उनकी हारों के संबंध पर मैंने जब समीक्षा की तो पता चला कि कुछ बागड़बिल्ले इनके दल में थे जो विरोधियों के लिए कार्यरत थे। इन महाराणाओं ने युद्ध के इस तथ्य की अनदेखी की होगी कि इनके पक्ष में कुछ लोग मुखौटे पहने भी हो सकते हैं।
इसके साथ ही इनका आंतरिक संघर्ष भी इनके हार का कारण बना। ये अगर एकजुट रहते, तो शायद इन्हें कभी भी हार का मुँह देखना नहीं पड़ता।
उन्होंने इस तथ्य की अनदेखी के साथ ही हठधर्मिता का ऐसा स्वांग रचा जिसके शिकार वे खुद हो गए। उन्होंने हमेशा धर्म व आचरण को युद्ध कौशल से बेहतर माना। यहाँ उल्लेखित धर्म हमारे आधुनिक धर्म जैसा नहीं है। उसका स्वरूप हमारे दलबदलू व कुरूप धर्म जैसा तो कभी नहीं था। उस काल में धर्म समाज की नैतिक उन्नति का परिचायक होता था।
उनको जितना उनके दुश्मन ने नहीं हराया था, उससे ज्यादा उनकी अच्छाई ने उन्हें हराया और तबतक हराया, जबतक वे वीरगति को प्राप्त न हो गए। मैं मानता हूँ कि अच्छा होना भला है लेकिन जब आप अपनी अच्छाई दिखाना चाहते हैं, तो सामनेवाले की भी अच्छाई पर एक नजर जरूर डाल लेना चाहिए क्योंकि अगर सामनेवाला छली, कपटी, धृष्ट होगा, तो हम कभी न कभी उससे मात खा ही जाएँगे। हम उसे एक बार हराकर जिंदा छोड़ देंगे, तो उसका हाल वैसा ही होगा, जैसे किसी अधमरे साँप को जिंदा छोड़ने पर होता है। वह दोबारा अपनी बढ़ी शक्ति के साथ आएगा और अपने दुश्मन का काम तमाम कर देगा।
हमें तय करना होगा और हमारी किताबों में चौड़े सुनहरे अक्षरों में यह लिखवाना होगा कि राजपूत इसलिए नहीं हारे थे क्योंकि वे युद्धकौशल में किसी से कम थे। वे इसलिए हारे थे क्योंकि उनपर अच्छाई व भलाई का भूत सवार था। उन्होंने एकबार भी अगर दुश्मन को सही तरीके से पहचानने की कोशिश की होती तो शायद आज हमारा इतिहास ही दूसरा होता और शायद हम औद्योगिक क्रांति से पहले तक अंग्रेजों से दूर ही रहते लेकिन जो होना था, वो हो चुका है और अब बदलाव की बात गोते लगा रही है।
हम क्यों बार-बार एक ही गलती करना चाहते हैं। हम कोई दूसरी गलती नहीं कर सकते हैं। पता नहीं, हमारे डीएनए में ही किसी ने ऐसा बीज बोया होगा कि आज भी जब कोई पैदा होता है तो वो भी वही गलती दोहराने की चेष्टा करते हैं।
मैं तय कर पाने में अक्षम हूँ कि आप वह गलती करके सही कर रहे हैं या गलत लेकिन इतिहास को भूलना अपनी सभ्यता से मुँह मोड़ने के बराबर है और आज इसीलिए हमारी यह हालत है। जब कोई अपने शिशु का नाम ऐसे शख्स के नाम पर रखता है जिसका इतिहास खूनी, दरिंदगी से भरा रहा है और उसे कोई फर्क भी नहीं पड़ रहा है, तो हमें समझ लेना चाहिए कि हम किसी गलत दिशा में जा रहे हैं। मैं किसी की मंशा पर सवाल नहीं उठाना चाहता हूँ लेकिन आगाह जरूर करूँगा कि इतिहास भूलनेवाले खुद इतिहास से गायब हो जाते हैं। इसके लिए आप फारस यानि ईरान को याद कर सकते हैं।
आपने पृथ्वीराज चौहान का नाम तो सुना ही होगा। वो ब्रिटिश आजादी से पूर्व आखिरी भारतीय शासक थे। मुहम्मद गौरी से जान-पहचान पुरानी थी, तो प्रथम युद्ध में गौरी को हराकर जिंदा छोड़ दिया और फिर उसी गौरी ने कुछ वर्षों पश्चात् उसके ससुर जयचंद के साथ मिलकर उसी मैदान में उसका काम तमाम कर डाला। हमने हर युग में जयचंद ही क्यों पाया है???
अगर उस जयचंद ने गौरी का साथ न दिया होता, तो गौरी कभी दूसरा युद्ध जीतने की हालत में न होता। ऐसे और भी घटनाएँ हैं जिनमें सातवीं सदी का सिंध का तख्तापलट प्रसिद्ध है।
आपको पता है कि हम आज भी क्यों कबीर, रहीम, तुलसीदास, मीराबाई आदि के बारे में पढ़ते हैं और कुछ हद तक जानते भी हैं। हम उन्हें इसलिए जानते हैं क्योंकि उन्होंने समय को अपना सबसे बड़ा हथियार माना। उन्होंने समय की महत्ता जानकर उसका सदुपयोग किया। उन्होंने अपनी पीढ़ियों का इतिहास सहेजकर ऐसी रचनाएँ गढ़ी कि वे आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं। और उनके मर्म तो आज भी ऐसे ही फलीभूत होते हैं जैसे अभी तुरंत किसी प्रकांड पंडित ने नयी रचना की हो। इनलोगों ने समय की महत्ता को समझकर अपने इतिहास को संजोए रखा।
आखिर में एक ही चीज कहूँगा कि आज हम जिस युग में रह रहे हैं, यहाँ समय की ठोर रहे न रहे लेकिन अपने इतिहास की ठोर जरूर रहनी चाहिए। हमें अपने लोगों को सही इतिहास बताना भी होगा और उसका मर्म भी समझना होगा।

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