कुमारवाणी पर आपका स्वागत है।

उस्ताद होटल- एक फिल्म, कई परतें

उस्ताद होटल एक ऐसी फिल्म है जो सही मायने में आपको भोजन की असली अहमियत बताती है। 

उस्ताद होटल 2012 में आयी एक मलयाली फिल्म है जिसके मुख्य किरदार दुल्कार सलमाननित्या मेनन हैं।

यह एक बेहतरीन फिल्म है जो युवा फैजल (उपनाम: फैजी) की जिंदगी के बारीक पहलुओं को उजागर करती है। वह पिता की इच्छा के विरूद्ध स्विट्जरलैंड में शेफ की पढ़ाई करता है और यह बात जब उसके पिता को पता चलती है, तब उसके पिता उसका पारपत्र (अंग्रेजी: पासपोर्ट) छीन लेते हैं, ताकि वो इंगलैंड में नौकरी न कर सके। इसके बाद फैजी कालीकट आकर अपने दादाजी के रेस्त्रां में शेफ का काम करने लगता है।

यह आलेख इस फिल्म की समीक्षा करने या मेरे लेखन जीवन में पतंग उड़ाने के लिये नहीं लिखा गया है। मैं सार्वजनिक व निजी जीवन में फिल्मों के सामाजिक विकास में सक्रिय योगदान के पक्ष में रहता है। मेरी यही चाहत मुझे मेरे अनुक्षेत्र से बाहर निकलने का मौका भी देती है और इसके कारण मैं कई भाषिक फिल्में देख पाता हूँ जो हिंदी में नहीं बनायी जाती है।

इस फिल्म के एक दृश्य में जब नारायणन कृष्णन (तमिल विकिपृष्ठफैजी को बताते हैं कि एक वृद्ध ने उनकी जिंदगी बदल दिया। वह सन् 2002 में अपने कार से कहीं जा रहे थे और उन्होंने रास्ते में देखा कि वह व्यक्ति अपना मल खा रहे थे। यह देखकर उनको बहुत बुरा लगा और उन्होंने बाजू के होटल से इडली लाकर उन्हें खिलाया।

नारायणन कृष्णनजी
छवि स्त्रोत: नारायणन कृष्णन

यह दृश्य देखकर मेरी आँखों में भी आँसू आ गये क्योंकि भोजन किसी भी आम जिंदगी का मौलिक अधिकार है और उस व्यक्ति को अपना ... खाना पड़ा। मुझे यह देखकर वाकई बुरा लगा और अंतर्जाल पर इस फिल्म से जुड़ी सूचनाओं को देखने पर मुझे कृष्णनजी की संस्था अक्षय ट्रस्ट (सजाल पता) के बारे में पता चला।

इसके बाद दिव्यांग बच्चों के साथ बिरयानी के दृश्य ने भी मेरा मन मोह लिया और मैं यह आलेख लिखने को प्रेरित हो पाया।

मुझे लगता है कि हमें इस और ध्यान देना ही पड़ेगा कि गरीबी और अमीरी के चक्कर में हम ऐसों को भूल रहे हैं जो अपने लिये दो जून की रोटी भी हासिल नहीं कर पा रहे हैं। हमारी पास रोटी बैंक भी है जो घरों से रोटी सब्जी जमा करके गरीबों में बाँटती है लेकिन यह सब अभी भी छोटे पैमाने पर ही हो रहा है।

हमें ऐसा कुछ करने की जरूरत है जो अखिल भारतीय स्तर पर हरेक को रोटी की सुविधा दे सके और इसके लिये पता नहीं, सरकार कितनी मददगार साबित होगी लेकिन हमलोग यदि संगठित होकर यह बीड़ा उठाये तो शायद हम यह लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।


हम ऐसा करने में कामयाब हो सकते हैं कि कुछ सालों बाद हमारे यहाँ ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो रात को भूखे पेट सोये।

फिल्म के अंत में दिखाया गया है कि फैजी हमेशा के लिये उसी रेस्त्रां में काम करनेवाला है और उन भूखों के लिये स्वादिष्ट व स्वस्थ भोजन का प्रबंध करेगा।
यह पृष्ठ अंतिम बार 07 मई 2017 (2309 भामास) को अद्यतित हुयी थी।

टिप्पणियाँ

यहाँ मानक हिंदी के संहितानुसार कुछ त्रुटियाँ हैं, जिन्हें सुधारने का काम प्रगति पर है। आपसे सकारात्मक सहयोग अपेक्षित है। अगर आप यहाँ किसी असुविधा से दो-चार होते हैं और उसकी सूचना हमें देना चाहते हैं, तो कृपया संपर्क प्रपत्र के जरिये अपनी व्यथा जाहिर कीजिये। हम यथाशीघ्र आपकी पृच्छा का उचित जवाब देने की चेष्टा करेंगे।

लोकप्रिय आलेख

राजपूत इसलिए नहीं हारे थे

कुछ गड़बड़ है

अतरंगी सफर का साथ

हिंदी या अंग्रेजी क्या चाहिए???

शब्दहीन

100 Most Effective SEO Strategies

बेलुड़ शुभागमन