आस अच्छे कल की
इस ६ और ७ को
मेरे दो प्यारे दोस्तों का जन्मदिन था और हमेशा की तरह मैंने उनकी उपेक्षा की। मैं
शायद हमेशा यही चाहता हूँ कि जो चीज मुझे पसंद आए, वह चीज केवल मेरी होनी चाहिए और
उसपर किसी का भी अधिकार नहीं होना चाहिए एवं मैं जो मानता हूँ, उसे सभी सिरमौर
मानें लेकिन इस दुनिया में यह कहाँ तक संभव है। हम अपने सपनों की उड़ान में अपने
घर से इतने दूर चले आते हैं कि एक दिन वहाँ वापस लौटना ही सबसे बड़ा सपना बन जाता
है लेकिन हम यह तब समझते हैं जब चिड़िया खेत चुग जाती है लेकिन तब भी हम आशा की
किरण नहीं छोड़ना चाहते हैं। हमारे जीवन में आनेवाले हरेक शख्स को डाकिया समझकर उसके
अपने घर तक एक पत्र पहुँचाना चाहते हैं कि शायद वहाँ से सीधे बुलावा आ जाए लेकिन
यह खेत चरने जितना आसान भी नहीं है।
वैसे मैं शीर्षक
पर आता हूँ, बहुत द्विअर्थी संवाद हो गया और अब सीधे मुद्दे पर बोलूँगा। मैंने एक
को एक दिन पहले ही वाट्सएप पर गुलदस्ता भेजकर उसे याद दिलाया और उस दिन और उसके
अगले दिन उससे बात भी किया लेकिन दूसरे को केवल गुलदस्ता (वाट्सएप पर ही) भेज पाया।
कारण पता नहीं, क्यों मैं उसे फोन नहीं कर पाया, शायद किसी दुविधा में था लेकिन तब
भी बात तो कर ही सकता था और ऐसा भी नहीं है कि हमारे बीच कोई मतभेद है लेकिन वह
तीसरा हमारे बीच सेतु जरूर है। कई बार हम किसी को वह दर्जा दे तो देते हैं लेकिन
उसकी अहर्ता पूरी नहीं कर पाते हैं और शायद यही वजह रही कि मैं उससे बात नहीं कर
सका और शायद इसीलिए आजतक बात नहीं कर पाया हूँ।
कुछ चीजें हमारे
लिए करने को आसान होती है लेकिन वास्तविकता में ऐसा करना क्या, ऐसा सोचना भी क्यों
परमाणु बम की घटना की तरह मुश्किल साबित होती है। मुझे गलतफहमी भी हो सकती है
लेकिन मैं इसका शिकार बन गया हूँ और मुझे इसके पिंड से छुटकारा चाहिए लेकिन लाइलाज
बीमारी होने पर मरीज जैसे हाथ सिर पर रखता है, वही हालत अभी मेरी है।
अगर आपके पास भी
इस तरह की कोई दास्तां है और आप हमारे साथ साझा करना चाहते हैं तो जरूर करें।
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