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भारत व चीन स्वाभाविक मित्र हैं





हालिया घटनाक्रम ने मुझे थोड़ा व्यथित किया और कुछ आलेखों को पढ़कर बिल्कुल बुरा नहीं लगा बल्कि वे सभी सच्चाई से प्रेरित हैं लेकिन मैं इस आलेख के माध्यम से यह जोड़ना भी चाहता हूँ कि क्या कोई व्यक्ति अपने मित्र की बुराइयों का इस तरह खिल्ली उड़ाता है और बुराइयाँ कहाँ नहीं होती है, बुराइयाँ सभी में होती है और हम हमेशा उन्हें कम करते रहते हैं और समय के साथ हम उनके साथ कभी-कभी समझौता भी कर लेते हैं। हमारी व्यवस्था में भी दोष है और हम उन्हें समाप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। मैं यहाँ तू-तू, में-में करने नहीं आया हूँ और न ही आपकी बुराइयों पर ध्यान इंगित करना चाहता हूँ।
आप बोलते हो कि भारत चीन के साथ सहयोग न कर अमेरिका के पीछे पड़ा हुआ है पर ये भी तो सच्चाई है कि आपके तरफ से भी तो समुचित सहयोग नहीं मिला, जो वाजिब है। आपने तो कई बार हदें भी पार कर दिया और आप हमसे अब भी मित्रता की उम्मीद रखते हो। मित्रता द्विपक्षीय होती है और इस प्रकार आपने तो कभी सकारात्मक कोशिश ही नहीं की। हमारे बीच एक युद्ध हुआ और आप जानकर खुश हो जाएंगे कि हम कभी युद्ध में विश्वास नहीं रखते हैं बल्कि हमने तो कभी किसी अन्य देश पर हमला भी नहीं किया। हमने हमेशा अपनी भौगोलिक क्षेत्रों में सीमित रहकर अपने विकास कार्यों को अंजाम दिया और सामाजिक उन्नति के लिए कई देशों में हमने अपने दूत भेजें, जो आपके व अन्य देशों में शांतिस्थापना में सहयोगी बने।
हमने आपके साथ अपनी परंपराओं को साझा किया और हमने कभी आपसे उसका हिसाब नहीं माँगा। हमने आपको बौद्ध धर्म रूपी सौगात देकर आपके यहाँ शांति स्थापना में सहयोग किया और मैं यह भी स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि आपने हमारे उपहार को सहर्ष स्वीकार कर अपने यहाँ उसे पुष्प-पल्लवित भी किया, जो आज तक जारी है। दरअसल, हम भारतीयों की एक खुबी है जो अन्य देशों के नागरिकों से हमें पृथक करती है। हम जिस देश में जाते हैं, वहीं के हो जाते हैं और अपनी परंपराओं को हम उस देश और उसकी तात्कालिक परिस्थितियों का अनुसरण करते हुए अपना लेते हैं। हमारे देश में भले ही हजार बुराइयाँ हों, पर हमें ही इसे सुलझाना होगा। आप तो आओगे नहीं, बल्कि आप जैसे लोग मजाक बनाएंगे।
मैं एक लोकतांत्रिक परंपरा में पैदा हुआ हूँ और यही परंपरा मुझे अलग विचार रखने की स्वतंत्रता भी देती है लेकिन क्या मैं आपसे यह उम्मीद कर सकता हूँ। मेरी उम्र अभी केवल 22 वर्ष है और मैंने पिछले 6-7 सालों से इस बात पर कायम भी हूँ कि लोकतांत्रिक परंपरा में काम धीमे होते हैं और सर्वांगीण विकास के लिए कभी-कभी जहर का घूँट पीना ही पड़ता है। मैंने अपनी चर्चाओं में कई बार आपके देश का उल्लेख कर यह जताया कि आपकी व्यवस्था हमसे बेहतर है लेकिन एक लोकतांत्रिक सत्ताधीश भी हूँ।
नोटबंदी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जब हमारे देशवासियों ने सहर्ष इसे अपनाया और कुछ तथाकथित विरोधियों की एक न चली। मेरी विनती है कि द्विपक्षीय मित्रता को और प्रगाढ़ कीजिए क्योंकि आनेवाला कल भारत और चीन का ही है। प्रथम दुनिया की अर्थव्यवस्थाएँ सिकुड़ रही है लेकिन आपका और हमारा बाजार प्रगतिशील है और इसमें हमारी दोस्ती का महत्वपूर्ण योगदान रहनेवाला है।

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