साहित्य का विकसित प्रारूप: चिट्ठन
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कुमारवाणी |
आप अंग्रेजी शब्द ब्लॉग
से सुपरिचित होंगे और हिंदी में इसके लिए भी एक शब्द है- चिट्ठा और इसे लिखनेवाले
लेखक चिट्ठाधारक कहलाते हैं| चिट्ठा
लिखने की इस कला को चिट्ठन कहते है और यहाँ इस आलेख के माध्यम से हम लेखन की इस
कला को साहित्य का दर्जा देने की कोशिश करेंगे|
हिंदी के कुछ साहित्यकारों का मानना है कि चिट्ठन सर्वसम्मत नहीं है और इसकी विधा भी वैधानिकता से परे है इसीलिए इसे साहित्य का दर्जा नहीं मिलना चाहिए| मैं भी इसकी पूर्ण वैधानिकता को समझने में समर्थ नहीं हूँ लेकिन इसे साहित्य का दर्जा मिलना चाहिए, इसपर मुझे संशय नहीं है|
हम चिट्ठाधारक इतनी मेहनत से अपना हरेक आलेख तैयार करते हैं और पाठकों से अपेक्षा रखते हैं कि वे अपने टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करते रहे, ताकि हम अपने पाठकों को नई व बेहतर सेवा दे सके और इसके लिए हम प्रतिबद्ध भी होते हैं|
आप बोल सकते हैं कि हमारी लेखनी में त्रुटियाँ होती हैं और इनका कोई साहित्यिक इतिहास व पदानुक्रम नहीं होता है लेकिन हम अपनी लेखनियों के प्रति प्रतिबद्ध होकर नई रचनाएँ गढ़ते हैं| हम अपने अनुभव से नई रचनाएँ कर अपने पाठकों को संतुष्ट करते हैं, ताकि वे दोबारा हमारे सजाल पर आकर नए आलेख पढ़ सके और पारंपरिक व आधुनिक लेखन में तो यही अंतर है। आप एक रचना लिखकर कुछ गणमान्य लोगों में बाँटते हैं और उनसे सकारात्मकता की उम्मीद रखते हैं। यहाँ वही काम हमारे पाठक वर्ग कर रहे होते हैं।
हिंदी के कुछ साहित्यकारों का मानना है कि चिट्ठन सर्वसम्मत नहीं है और इसकी विधा भी वैधानिकता से परे है इसीलिए इसे साहित्य का दर्जा नहीं मिलना चाहिए| मैं भी इसकी पूर्ण वैधानिकता को समझने में समर्थ नहीं हूँ लेकिन इसे साहित्य का दर्जा मिलना चाहिए, इसपर मुझे संशय नहीं है|
हम चिट्ठाधारक इतनी मेहनत से अपना हरेक आलेख तैयार करते हैं और पाठकों से अपेक्षा रखते हैं कि वे अपने टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करते रहे, ताकि हम अपने पाठकों को नई व बेहतर सेवा दे सके और इसके लिए हम प्रतिबद्ध भी होते हैं|
आप बोल सकते हैं कि हमारी लेखनी में त्रुटियाँ होती हैं और इनका कोई साहित्यिक इतिहास व पदानुक्रम नहीं होता है लेकिन हम अपनी लेखनियों के प्रति प्रतिबद्ध होकर नई रचनाएँ गढ़ते हैं| हम अपने अनुभव से नई रचनाएँ कर अपने पाठकों को संतुष्ट करते हैं, ताकि वे दोबारा हमारे सजाल पर आकर नए आलेख पढ़ सके और पारंपरिक व आधुनिक लेखन में तो यही अंतर है। आप एक रचना लिखकर कुछ गणमान्य लोगों में बाँटते हैं और उनसे सकारात्मकता की उम्मीद रखते हैं। यहाँ वही काम हमारे पाठक वर्ग कर रहे होते हैं।
हम नित नए प्रयोगों के
आधार पर नए आलेख लिखते हैं और समसामयिक घटनाओं के आधार पर इसे अपने सजाल पर
प्रकाशित करते हैं| हम अपने
आलेखों को लिखने से पूर्व सूचनाओं का जखीरा तैयार करते हैं और फिर इनसे जुड़े
शब्दों को जोड़कर अपना आलेख तैयार करते हैं और अपना पाठक आधार बनाते हैं| हमारे कुछ चिट्ठाधारक मित्र अपनी पुस्तक तक प्रकाशित कर चुके हैं और उनके
अनुभव पूर्णतया चिट्ठाधारित होते हैं|
अब आप पाठक तय कीजिए कि आप मेरे विचार से इत्तेफाक रखते हैं या नहीं...।
अब आप पाठक तय कीजिए कि आप मेरे विचार से इत्तेफाक रखते हैं या नहीं...।
विशेष: यह एक चर्चात्मक आलेख हैं और पाठकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने मंतव्य देकर हमारा मार्गदर्शन जरूर करें|
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