द्वंदिता
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लगता है कि पिछले कई महीने पूर्व घटित कश्मीर व जनवि से
हम अभीतक उबर नहीं पाए हैं| हम
अभी भी द्वंद्व में हैं इसीलिए हमारे पास कई सवालों के जवाब नहीं है| हमारे यहाँ ऐसे भी
मान्यता रही है कि आप जिस चीज का समाधान नहीं चाहते हैं, उसे राजनीतिक चोगा पहना
दो, लोग
खुद-ब-खुद उससे दूर हो जाएँगे और यही समस्या आज विकराल हो चुकी है|
आखिर हम कब समझेंगे कि किसी भी मामले को राजनीतिक रंग देने से उक्त
जटिल ही होगा| हमारी
कई समस्याओं का जड़ राजनीतिक प्रतिद्वंदिता ही है| हम निज स्वार्थों की
पूर्ति हेतु किसी भी मामले का राजनीतिकरण कर देते हैं और यह मसला सदियों तक चलता
रहता है और इसके अनगिनत उदाहरण हमारे देश में मौजूद हैं|
मसलन, गरीबी
और उसके उन्मूलन का ही लीजिए| कई सरकारे दावा करती है कि उन्होंने गरीबी हटाने के लिए पिछले कई सालों
में करोड़ों खर्च किए लेकिन इसके उलट हमारे विपक्षी दल विरोध के मारे ही सही लेकिन
इसी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को नाकाफी बताकर अवहेलना कर देते हैं| यहाँ इन दोनों पक्षों को
समझना चाहिए कि ये हमारे राजनीतिक नेतृत्व हैं लेकिन इनको मलाई मारने से फुर्सत
मिले तब तो, इन्हें
केवल अपना फायदा दिखता है और जहाँ फायदा दिखता है, वहीं लुढ़क जाते हैं|
अब इसके राजनीतिक पहलू को नजरंदाज कर उसके आर्थिक पहलू पर गौर कीजिए| जब किसी सरकार ने किसी
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में दस करोड़ खर्चे लेकिन गरीबी नहीं मिटी लेकिन पैसे तो
खर्च हुए| जब
उन पैसों से गरीबी खत्म या कम नहीं हुई, तो वे पैसे कहाँ गए और किसपर खर्च हुए| हमने कभी इस ओर ध्यान ही
नहीं दिया| हम
भले ही एक जागरूक मतदाता के रूप में चिह्नित हो रहे हैं लेकिन हम अभी भी पूर्ण
जागृत नहीं हुए हैं| हमने केवल मतदान के समय बेहतर विकल्प को अपनाना सीखा है लेकिन यहाँ भी
राजनीतिक विचारधारा के घालमेल ने हमें भ्रष्ट बना दिया है|
हम निर्वाचन से कई महीने पूर्व ही तय कर जाते हैं कि हमें फलां
व्यक्ति को ही अपना मत देना है क्योंकि उक्त किसी ऐसे दल का सदस्य होता है जिससे
हमारी विचारधारा मेल खाती है और इस कारण कई ऐसे उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं और
अधिकतर तो ऐसे होते हैं जिनका सही नाम तक हमें पता नहीं होता और दल प्रतीक व झंडे
देखकर ही हम मतदान का बटन दबा जाते हैं|
इन सबसे आखिरकार हमारा ही नुकसान होता है| हमें समझना होगा कि
विचारधारा मानसिक रूप से तबतक सार्थक होती है, जबतक हमारा पेट भरा रहे| हम केवल अपने विचारधारा
की पूर्ति के लिए ऐसे कर्म नहीं कर सकते हैं जो अंततः हमारा ही नुकसान करे लेकिन
हम अभी भी यही कर रहे हैं|
सिर्फ मतदान के समय जागरूक होने से अल्प फायदा होगा लेकिन अगर हम
अपनी जागरूकता का दायरा बढ़ाते हैं, तो अंततः इससे हमारे समाज व देश की उन्नति ही होगी|
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