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हमारी बोलियाँ

क्या आपमें से कोई हमारी सभी भाषाओं को जानते हैं, उनकी बोलियों को जानते हैं। आज उनका व्याकरण जानना उतना जरूरी नहीं है, जितना उनके अस्तित्व को पहचानना। हममें से कई दो या अधिक भाषाएँ बोलकर ही संतुष्ट हो लेते हैं लेकिन शेष सत्रह सौ भाषाओं व उनकी बोलियों का क्या, उनका ख्याल कौन रखेगा।
हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि हमारी भाषाएँ तो कभी भी किसी भी तालिका में नजर आ जाएँगी लेकिन हमारी बोलियाँ इस हालत में कभी भी नहीं होंगी कि वे अपनी अस्मिता भी बचा सके। आज भाषा और बोली का फर्क जानना जितना जरूरी है, उससे ज्यादा जरूरी उन्हें समझने की है। हमारी सभी बोलियाँ, चाहे वे पूर्वोत्तर, हिमाचल, पहाड़ी या दक्षिणी या पूर्वी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हो, उन्हें सहेजकर रखना नितांत आवश्यक हो गया है।
वैश्वीकरण के इस दौर ने हमें इतना तेज बना दिया है कि हम कई चीजों को पलटकर भी नहीं देख पाते हैं। हमें बहुत जल्दी हो जाती है, हम बेसब्र हो जाते हैं। किसी भी इम्तिहान की तैयारी व उसके परिणाम के बीच जितना अंतर होता है, यहाँ तो वह मिलीसकेंड में हो जाता है और शायद यही वजह है कि हम अधिक तेज हो गए हैं लेकिन हमारी भाषाएँ और उनकी बोलियाँ उसी रफ्तार से तेज नहीं हो पायी हैं।
हमारी भाषाओं में पिछले वर्ष कितने नए शब्द आए या कुल कितने शब्द हैं, यह भी नहीं पता है तो हम अपनी बोलियों को कैसे सहेजेंगे। हमें यह याद रखना होगा कि हमारी सभी भाषाएँ व उनकी बोलियाँ हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं, भले ही हम सभी उन्हें न बोल पाते या समझ पाते हो लेकिन हमें उन बोलियों को भी उचित सम्मान देना होगा, भले ही कुमाऊँनी हो, या वज्जिका।
ये बोलियाँ हमारी विविध संस्कृति की पहचान हैं और सही मायने में ये ही हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है। हममें से कोई जब किसी अपने से मिलता है, तो वह अपनी खास मीठी बोली का ही इस्तेमाल करता है क्योंकि वह सुनने में जितना खास होता है उतना ही कानों को मधुर भी लगता है। आप देश की किसी भी हिस्से से गुजरिए, आपको इन बोलियों की मिठास का अंदाजा लग जाएगा।
ये बोलियाँ हमारी संस्कृति की परिचायक होने के साथ-साथ असंख्य गुणों को समेटे हुए हैं। इनके शब्द हमारी भाषाओं को उचित बल प्रदान कर पाते हैं और शायद यही वजह है कि आप आज हिंदी या अन्य भाषाओं में अपने विचार फेसबुक, ट्विटर या किसी भी सजाल से साझा करते हैं, तो यह उसी की तो ललक है जो कभी हमें बैचेन करती थी कि काश, हम अपनी भाषाओं में भी अपने विचार लिखकर दुनिया को बता पाते और अपने शब्दों के जादू से दुनिया को मोहित कर पाते।
हमारी बोलियाँ इस मायने में भी महत्वपूर्ण हैं कि वे अपने क्षेत्रीय गुणों से परिपूर्ण हैं और इनकी यही छटा उन्हें हमारी भाषाओं से पृथक करती है जब हम भाषा छोड़कर हमारी बोलियों की मदद से विचार साझा करने लगते हैं। इनके शब्द भले ही भिन्न पृष्ठभूमि के होते हैं लेकिन आप सोचिए कि इसी वजह से हमारी हिंदी में ही एक ही शब्द के अनेक तुल्य शब्द मिल जाते हैं लेकिन अपनी अनभिज्ञता के कारण या क्षेत्रीयता के कारण हम उनमें से एक या दो को ही आत्मसात् कर पाते हैं।
अब आप सोचेंगे कि आप कैसे इन्हें सहेजेंगे, तो इसका सरल जवाब है कि आप इनका प्रयोग अपनी विभिन्न रचना जैसे कहानी लेखन में करें और शेष दुनिया को इससे परिचित कराएँ कि वह फलां बोली का है। मैं जानता हूँ कि यह बोलना आसान है लेकिन धरातल पर कठिन, पर मैं तो आगे बढ़ रहा हूँ। मुझे सागरमाथा की जरूरत नहीं है और मैं चुपचाप आगे बढ़ भी जाऊँगा।

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