खयालात या...
हम जब छोटे होते
हैं, तब हमारे माँ-बाप ही हमारी दुनिया होते हैं| हम हर रोज उसी छोटी सी दुनिया से
अपने लिए नई कहानियाँ, नए खिलौने और कभी-कभी तो नए किरदार तक गढ़ लेते हैं|
हमारी
रचनात्मकता जब हिलौरे ले रही होती है, तबतक हम किशोरावस्था में पहुँच जाते हैं और
हमपर कई बंदिशे लगा दी जाती है या स्वतः लग जाती है और हम उस समय अपनी नासमझी में
विरोध कर देते हैं या फिर दब जाते हैं लेकिन इन दोनों के ही फलस्वरूप हमारी
रचनात्मकता पर विराम लग जाता है|
अब हमारी दुनिया
बड़ी होने लगती है| वह फेसबुक, ट्विटर जैसे सामध्यमाओं के कारण इतनी बड़ी हो जाती
है कि हम इसकी कल्पना तक नहीं कर पाते हैं| इस समय हम केवल अपने अभिभावकों के
परामर्श पर ही कोई काम नहीं करते हैं| हमारी अपनी अलग दुनिया बनने लगती है जहाँ
हमारे कई दोस्तों का आना-जाना लगा रहता है| कुछ हमारे सर्वश्रेष्ठ मित्र बन जाते
हैं, तो कुछ गुमशुदा बनकर रह जाते हैं| कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी भूमिका हमारे
जीवन में नगण्य होती है लेकिन जरूरती वक्त में वे एक जादूगर के रूप में हमारे
सामने प्रस्तुत होते हैं और झटपट हमारी समस्या को सुलझा देते हैं| इनमें से कुछ का
साथ आजीवन होता है, तो कुछ अल्पावधि के लिए उपलब्ध होते हैं लेकिन ये सभी हमारे
जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं जिन्हें हम उपेक्षित नहीं रख पाते हैं|
हम अबतक
माध्यमिक उत्तीर्ण कर चुके होते हैं और उच्चमा (उच्चमाध्यमिक) की पढ़ाई पश्चात्
जीवन के ऐसे रेल में बैठने की तैयारी कर रहे होते हैं जिसका टिकट रद्द करवाना
अधिमुश्किल साबित होता है| हम शायद तबतक सिर्फ एक इंसान ही रह जाते हैं| हमारे पास
इंसानी भाव तो होते है लेकिन वो जज्बात नहीं होते जिनसे हम अपनी अभिव्यक्ति को
आवाज दे सके| हम तबतक पक्के इंसान बन जाते हैं, तभी तो जिनके साथ हमारा बचपन गुजरा
था, उन्हें ही धोखा देना शुरु कर देते हैं|
यहाँ धोखा देने
का तात्पर्य वास्तविक धोखेबाजी से नहीं है, भला कोई पंद्रह-सोलह वर्षीय किशोर या
किशोरी धोखेबाजी के बारे में क्या जानेंगे| आप बोल सकते हैं कि इनकी दुनिया अबतक
इतनी बड़ी हो जाती है जहाँ वे सभी चीजों से स्वतः परिचित हो जाते हैं और इनके साथ
उस समय जो परिवेश होता है, वह खुद ही उन्हें इन हालातों से पहचान करवा देता है
लेकिन तब भी वे उस समय तक कई संज्ञाओं से अपरिचित रहते हैं और शायद तबतक रहते हैं,
जबतक कि वे इनसे खुद परिचित न हो जाए और इन सभी के साथ रुचि का भी जुड़ाव जरूरी है
क्योंकि इस उम्र तक हमारे पास रुचियों के कई विकल्प मौजूद होते हैं जो शायद इस
अवधि के बाद उतने उपलब्ध नहीं रहते हैं|
हम कई दफा
द्वंद्व में भी फँस जाते हैं जब हमारे पास अभिभावकीय मार्गदर्शन अनुपलब्ध होता है
लेकिन हममें से कुछ खुशनसीब भी होते हैं जो किसी गलत राह पर न चलकर खुद अपनी राह तय
करने लगते हैं| हम इस समय यह भी तय कर रहे होते हैं कि हमें आगे क्या करना है
क्योंकि इस समय हम बहुत जल्दी में होते हैं| कुछ लोग कहते हैं कि युवामन बहुत चंचल
होता है लेकिन वे यह भुल जाते हैं कि युवामन चंचल होने के साथ अधिक प्रतिस्पर्धी
भी हो जाता है और इसके कारण कई बार दुर्घटनाएँ भी हो जाती है और हम उस युवा पर दोष
मढ़ देते हैं| हम भूल जाते हैं कि हर मन को मानसिक सहायता की जरूरत होती है और
उचित सहायता न मिलने के कारण ही यह गड़बड़ होती है|
हम इनसे दो-चार
होते हुए अपने उच्चमा परीक्षा की तैयारी करते हैं और परिजन हमसे यह अपेक्षा रखते
हैं कि हम उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरें और परीक्षा में अधिकाधिक अंक प्राप्त कर
सके| हम भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं और जीतोड़ मेहनत कर परीक्षा में अच्छे अंक भी
ले आते हैं लेकिन कई बार हमारे अंक हमारे अभिभावकों को पसंद नहीं आते हैं या फिर
वे हमेशा हमें यही बताते रहते हैं कि थोड़ा और पढ़े होते, तो अधिक अंक हो सकते थे|
हम उनकी आकांक्षाओं तले दबने लग जाते हैं और हमें धीरे-धीरे पता चलने लगता है कि
हम जकड़ लिए गए हैं लेकिन मैं इसके साथ यह भी कहना चाहता हूँ कि हम गुलाम नहीं
होते हैं लेकिन हममें से कई उम्मीदों की बेड़ियों से जकड़े हुए जरूर रहते हैं|
(क्रमशः)
विशेष: यह इस श्रंखला का पहला भाग है और इसके दूसरे भाग के संपादन का कार्य प्रगति पर है। इसके दूसरे भाग को किसी अन्य शीर्षक के साथ प्रकाशित किया जाएगा लेकिन आपको तत्पूर्व जानकारी होगी कि वह भाग इसका अनुज है।
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