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परिपक्वता

सभी पाठकों को मेरा सुप्रभात है और इस आलेख में हम मौजूदा परिदृश्य का अध्ययन कर यह साबित करेंगे कि एक लोकतंत्र के रूप में हम किधर जा रहे हैं| मैं यह आलेख किसी वैमनस्यहीन माहौल को ध्यानार्थ कर लिखूँगा लेकिन एक लोकतांत्रिक व्यक्ति के तौर पर मैं सार्थक आलोचना की पहल तो कर ही सकता हूँ|
आप इस आलेख को जनवरी माह की श्रेष्ठ आलेखों में से एक मान सकते हैं क्योंकि यह आपकी संपूर्ण दिनचर्या को समाहित करने की कोशिश करेगा| 
हम आप फिलहाल अपनी दिनचर्या आरंभ करनेवाले हैं लेकिन इसके साथ हमारी राजनीतिक समझदारी की बात जरूर होना चाहिए क्योंकि एक स्वस्थ व समझदार राजनीतिक मन ही देश या समाज के किसी अंग का बेहतर नेतृत्व कर सकता है| हम राजनीतिक रूप से परिपक्व हुए हैं और यह वास्तविकतः हमारे असली विकास का परिचायक है|
आप इसे बहती हवा को झौंका न मानकर इसके स्थायित्व को समझिए क्योंकि यह हमारे देश के संपूर्ण विकास में महत्वपूर्ण साथी बननेवाला है| स्वतंत्रतापूर्व कई आलोचकों को शक क्या, उन्हें पूर्ण विश्वास था कि हमारा देश एक लोकतांत्रिक मंदिर के रूप में ज्यादा दिन न टिक सकेगा क्योंकि इन तथाकथितों का यह मानना था कि तत्कालीन समय में  हमारे लोग लोकतंत्र सरीखे मानकों पर उतने शिक्षित नहीं थे लेकिन हमारे सेनानियों व तत्कालीन पीढ़ियों की मेहनत ने इस लोकतांत्रिक आस्था को बनाए रखा और जब भी इसपर चोट होने की आशंका होती, वह उतनी ही मजबूती व ताकत से पलटवार करती और यह प्रक्रिया आज भी अनवरत जारी है और ऐसे लोगों द्वारा संचालित है जो ताउम्र बेनामी रहकर समाज और देश को आईना दिखाते हैं।
हम इतिहास दोहराने में यकीन रखकर उसे पहले भुलाने की चेष्टा करते हैं और फिर वक्त आने पर उसे दोबारा याद भी कर जाते हैं लेकिन आज यह प्रक्रिया कहीं ठहरी हुई है| हम अब शायद उन पन्नों को सहेजना चाहते हैं जो कहीं धूल फाँकने को बेबस थी लेकिन आज भी हम वह लक्ष्य हासिल करने में नाकामयाब ही रहे हैं|
हमारी समझदारी आज वृहत् हुई है और समय के साथ यह वृहत्तर होती जाएगी लेकिन हमें हर उन घटनाओं को याद रख उन्हें अपने स्मृति में जगह देना होगा जो हमें याद दिलाती है कि हम एक लोकतंत्र में आस्था रखनेवाले  नागरिक हैं| हम किसी के बहकावे में आकर अपने फैसले तुरंत नहीं बदलते हैं, बल्कि अपनी सोच व समझ के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन कर चीजों का मूल्यांकन करते हैं| हमें अपनी संस्थागत व बुनियादी सोच को जिंदा रखना होगा जिससे हम अपने लोकतांत्रिक मंदिर को अहसास करा सके कि यह मंदिर आज भी जवान है और अपनी इसी युवा सोच से हमारा व हमारे देश का भला करता रहेगा|

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