कुमारवाणी पर आपका स्वागत है।

सत्तर लखिया स्वर्ण, तो पैंसठ करोड़ी रजत भाग-1

रियो ओलंपिक 2016
हम अपने खेलों के प्रति कितने संजीदा हैं, ये तो किसी से छुपा भी नहीं है लेकिन हम हीनता के कारण अपना अहित ढोल-नगाड़ों के साथ करते हैं| हमें तो साल २०१६ में पहली बार पता चला कि हमारे खिलाड़ी सुट-बुट के साथ किसी ओलंपिक नामक प्रतियोगिता में हिस्सा लेने विदेश जाते हैं लेकिन आते वक्त इनके हाथ तंग रहते हैं| ओलंपिक २०१६ को आप एक अच्छी स्मृति के रूप में सहेजकर रख सकते हैं, बशर्ते आपको अपनी प्रतिबद्धता हमारे खेलों व उनसे संबद्ध खिलाड़ियों के प्रति जाहिर करना होगा और यह एक सतत प्रक्रिया है और आप इससे भावीकाल में मुँह भी नहीं मोड़ पाएँगे|
पिछले वर्ष ओलंपिक ब्राजील के रियो शहर (पूर्णनाम- रियो डि जनेरो) में हुई और इसका जिस तरह शानदार आगाज हुआ, उतना ही सुंदर समापन भी हुआ| हमारे लोग इस बार पहले की अपेक्षा ओलंपिक के प्रति ज्यादा जागरूक थे और शायद इसी कारण हम पलपल की खबरों पर निगाह रख रहे थे| हम अपने इतिहास को भुलाने के आदी रहे हैं और शायद इसीलिए हमने इस बार अपने खिलाड़ियों से ज्यादा पदक की आस लगाए बैठे थे| पदक की आस रखना वैसे तो गलत बात नहीं हैं लेकिन हमें खुद से यह प्रश्न भी करना होगा कि हमने एक नागरिक के तौर पर इन खिलाड़ियों की कुछ मदद की या नहीं क्योंकि ये खिलाड़ी अगर पदक लाते हैं, तो ये भारत के नाम पर होगा, हमारे नाम का होगा लेकिन सिवाय पैसों की मदद के हम कुछ न कर सके और इस प्रकार हमने तो हमारे खिलाड़ियों के साथ ज्यादती कर दिया|
इस बार हमारे खिलाड़ी बहुत ज्यादा संख्या में रियो पहुँच गए थे और इसीलिए हमलोगों ने सोचा कि इस प्रकार न्यूनतम दस-पंद्रह पदक तो आ ही जाएँगे लेकिन इस संभावित पदक तालिका को हमारे खिलाड़ियों ने पूरी तरह धता बता दिया और आरंभ में तो ऐसा लग ही रहा था कि हमारे हाथ अंततः खाली ही रहनेवाले हैं लेकिन कोई इसे चमत्कार बोलिए या करिश्मा लेकिन आखिरी मौके पर मिली दो पदकों ने हमारा हौसला बढ़ा दिया| हम तो शायद विश्व सर्वउत्साही कमेटी के सदस्य बन गए थे और सामध्यमा पर अपनी खुशी जगजाहिर करने लगे।

(क्रमशः)
यह आलेख चार भाग में प्रकाशित हुई है और यह इसका प्रथम भाग है।

टिप्पणियाँ

यहाँ मानक हिंदी के संहितानुसार कुछ त्रुटियाँ हैं, जिन्हें सुधारने का काम प्रगति पर है। आपसे सकारात्मक सहयोग अपेक्षित है। अगर आप यहाँ किसी असुविधा से दो-चार होते हैं और उसकी सूचना हमें देना चाहते हैं, तो कृपया संपर्क प्रपत्र के जरिये अपनी व्यथा जाहिर कीजिये। हम यथाशीघ्र आपकी पृच्छा का उचित जवाब देने की चेष्टा करेंगे।

लोकप्रिय आलेख

राजपूत इसलिए नहीं हारे थे

100 Most Effective SEO Strategies

कुछ गड़बड़ है

अतरंगी सफर का साथ

हिंदी या अंग्रेजी क्या चाहिए???

शब्दहीन

नामकरण- समीक्षा