सत्तर लखिया स्वर्ण, तो पैसठ करोड़ी रजत भाग-3
हम तब तत्काल
अन्वेषण करेंगे कि कितने खिलाड़ियों को सरकार की ओर से कितनी सहायता राशि दी गई और
कितनों ने कब-कहाँ प्रशिक्षण लिया और कितनों को प्रशिक्षक मिले या नहीं|
ऋणकणिक मध्यमा (अंग्रेजी: इलेक्ट्रोनिक मीडिया) तो इस तरह की खबरों में रुचि नहीं
लेता, उसे तो मसाला चाहिए जिसके फलस्वरूप वह तत्काल रोजाना टीआरपी रूपी मिठाई का लुत्फ
उठा सके|
मैं अब अपने
पदकधारियों का बखान करूँगा क्योंकि इस खेल नैय्या में अगर इनका उल्लेख न करूँ, तो
यह ऐसा ही होगा कि बिना मिठास के मिठाई| हमारे पास दो पदक आए- १ रजत व १ कांस्य|
रजत पीवी सिंधु ने, तो कांस्य साक्षी मल्लिक ने लाया और इन दोनों की
सफलता का पूरा श्रेय उनके प्रशिक्षकों को जाता है| हमें असम की दीपा
कर्मकार को भी नहीं भुलना चाहिए, जिन्होंने बहुत सालों बाद जिम्नास्टिक
में भारत का प्रतिनिधित्व किया और कुछ अंतर से पदक से चूक गई लेकिन इसके साथ ही
अलख जगा गई कि अगले ओलंपिक में वह पदक की प्रबल दावेदार होगी लेकिन यह क्षण भी
२०२० में ही मिलेगा| सो, तबतक हमें सब्र रखना होगा|
हमें यह नहीं
भुलना चाहिए कि गोपीनाथजी (सिंधु के प्रशिक्षक), नंदीजी (दीपा के), कुलदीपजी (साक्षी के
प्रशिक्षक) के संपूर्ण त्याग के बिना यह स्वप्न भी पूरा न होता लेकिन इन्होंने
अपने लगन व कड़ी तपस्या से खुद को जंगरोधी बनाकर ऐसे खिलाड़ी बनाए जो पदक हासिल कर
सके या पदकीय क्षमता रखते हो| साइना नेहवाल आज घर-घर में जानी-पहचानी नाम है और इन्होंने भी शुरुआत
गोपीनाथजी के सान्निध्य में ही किया था लेकिन बाद में सायना ने इनका साथ छोड़ दिया| जरा सोचिए कि गोपीनाथ पर ध्यान अगर
२०१२ ओलंपिक में चल जाता जब साइना ने कांस्य हासिल किया था, तो शायद हम २०१६ ओलंपिक में एकाधिक पदक या रजत के बदले
स्वर्ण की उम्मीद रख सकते थे लेकिन तब हमने इन्हें सिरमौर नहीं किया और ये
गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर हो गए और आज भी वही गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं|
(क्रमशः)
यह आलेख चार भाग में प्रकाशित हुई है और यह इसका तृतीय
भाग है।
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