तकनीकी प्रतिबद्धता
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हिंदी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता |
हम कई बार अपने ही सवालों में उलझकर रह जाते हैं और उनमें से कईयों के जवाब तो
हम ताउम्र ढूँढने में बिता देते हैं और कुछ तो इसी चक्कर में परलोक सिधार भी जाते
हैं।
हमारी सुप्रतिष्ठित भारत सरकार अबतक भारतीय भाषाओं को अव्वल स्थान दिलाने में
नाकाम रही और वैश्वीकरण के इस मकड़जाल ने हमें इतना व्यस्त बना दिया कि हम अपनी
भारतीय भाषाओं में उन तकनीकों का प्रयोग करना चाहते हैं। हम भले ही अंग्रेजी
माध्यम विद्यालयों में पढ़ेंगे लेकिन तकनीकी व दैनिक कार्य हिंदी में करेंगे और बात कमाई
की हो तो कहना क्या।।। हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्ता हमारा।
आज जो लोग इन तकनीकी जगहों पर हमारी भाषाओं के लिए काम कर रहे हैं, उनमें से
अधिकतर तो केवल बोली के रूप में उन भाषाओं को जानते हैं। उन्हें हमारी भाषाओं में
तकनीकी ज्ञान हासिल नहीं है और इस कारण जब वे और उनकी तथाकथित समुदाय, चाहे वे
किसी भी मंच पर हो, केवल कोरा अनुवाद कर रही है और इस कारण हमारी भाषाओं में
अशुद्धियों का जाल बन गया है, जिसे हम चाहते हुए भी नहीं हटा पा रहे हैं। जो लोग
सही जानते भी हैं, वे भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वह या कोई भी कंपनी उनके
बाबूजी की नहीं है कि वे सीधे फरमान सुना दें कि उनके किए कथित अनुवाद पूर्णतया
सही नहीं है और उनमें तत्काल सुधार की भी जरूरत है लेकिन यह करने में असमर्थ साबित
हो रहे हैं। मुझे तो पूर्ण विश्वास है कि जो कथित अनुवादक इन भाषाई सामग्रियों का
हमारी भाषाओं में अनुवाद कर रहे हैं, उन्होंने शायद ही कभी अपनी भाषाओं में उन
अनुपों (या अनुप्रयोगों) का प्रयोग भी किया होगा लेकिन दुख के साथ कहना होगा कि ये
लोग अशुद्ध अनुवाद करते हैं और कुछ भी कहना वक्त जाया करने जैसा होगा।
एक और चीज जोड़ूंगा कि ये लोग भाषाई तकनीकी अनभिज्ञता को नजरअंदाज करतु हुए
उनके सरल अंदाज को अपना रहे हैं और यह आज के अंकीय युग में हमारी अपनी भाषाओं की
असली हार बन सकती है।
जो काम हमारी सरकार पिछले सत्तर सालों में न कर सकी, वो काम इन कंपनियों ने
अपने मुनाफे के लिए कर दिखाया और इसमें गूगल का नाम लेना जरूरी है क्योंकि इस
कंपनी ने अभी तक भारतीय भाषाओं के लिए सबसे ज्यादा काम किया है, चाहे वो कोई किताब
ही क्यों न हो लेकिन इसकी प्रतिबद्धता भी सवालों के घेरे में है। इनके सभी कर्मी
अंग्रेजीदाँ हैं और कुछ भारतीय अपनी भाषाओं में अनुवाद कार्य कर रहे हैं और इसकी
अनुवाद समुदाय तो कमाल का काम कर रही है और मैं भी इनमें से एक हूँ। मैंने भी अपना
थोड़ा योगदान दिया है।
आज के युग में यूनिकोड की निर्णायक भूमिका ने हमें व हमारी भाषाओं को अधिक
सशक्त बना दिया है लेकिन हम आज भी १९९५ के जमाने में जी रहे हैं। हमारे सरकारी
सजाल हिंदी व अन्य भाषाओं में मौजूद तो हैं लेकिन ये अपनी भाषाओं को समझने में अभी
भी असमर्थ हैं। ये केवल मूरत हैं जो शक्ल तो किसी महान आत्मा का लिए हुए हैं लेकिन
हैं तो पत्थर के ही और हम अपनी भाषाओं के अंतर्विरोध को हवा देकर उन्हें कमजोर बना
देते हैं।
हमारे यहाँ संगणक (या कंपूटर) पर जो प्रणाली सर्वाधिक प्रयुक्त है, वह भी
पूर्ण भारतीय भाषाओं में नहीं है और जो उपलब्ध भी है, वो अपूर्ण व अशुद्धित है
लेकिन मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। मेरे पास करीब चार हजार आँग्ल तकनीकी व सांगणिक
शब्दों के हिंदी संस्करण उपलब्ध हैं और मैं उन्हें दुनिया के हर कोने तक पहुँचाना
चाहता हूँ लेकिन मैं असमर्थ हूँ, शायद यह आलेख मुझे उन जरूरतमंदों तक पहुँचा दे।
मैं रास्ते तलाश
रहा हूँ कि अपनी सभी भारतीय भाषाओं को उनका गौरव दिला सकूँ लेकिन मैं यह भी जानता
हूँ कि जितनी आसानी से मैंने यह पंक्ति लिखा है, उतनी आसानी से यह होनेवाला नहीं
है।
मैं फिर भी
कोशिश कर रहा हूँ।
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