विदेश नीति
आज हम विदेश
नीति पर चर्चा करेंगे और एक आम राय बनाने की कोशिश करेंगे कि आज के वैश्वीकरण के
दौर में विदेश नीति की सशक्त भूमिका कैसे किसी देश के विकास में प्रत्यक्ष तौर पर
होती है|
आज हम जिस दौर में हैं, उस दौर में विकसित देशों का
सकल घरेलु उत्पाद यानि कि सघउ दर
घटोतरी पर है लेकिन वहीं दूसरी तरफ विकासशील देशों का जीडीपी दर बढ़ोतरी पर
है| मैं मानने को तैयार हूँ कि सघउ दर से आप किसी देश के संपूर्ण विकास का आकलन
नहीं कर सकते हैं लेकिन हमें किसी पैमाने की जरूरत तो होगी जिसपर हम खुद को माप
सकें और भूटान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जहाँ विकास के मायने शेष दुनिया से अलग
है| हम एक व्यक्ति या देश के तौर पर किसी
अन्य देश के विरूद्ध सीधे कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि हम लोकतांत्रिक आस्था से
भी बँधे हुए है और हमारा विश्वास भी है कि हर देश प्रगति करें और इसके लिए उसे
अपनी अस्मिता से समझौता भी न करना पड़े|
खैर, जो देश
जैसे चाहे, वैसे पैमाने तय करके अपने यहाँ विकास करे लेकिन हमें यह मानना होगा कि
विकसित देशों के पास मुद्रा है और भारत जैसे विकासशील देशों को उस मुद्रा की जरूरत
है लेकिन इसके साथ ही हमें यह मानना भी होगा कि यह प्रक्रिया एकतरफा नहीं है| हम
विकसित देशों से बेहतर संबंध बनाकर अपने यहाँ निवेश आकर्षित कर सकते हैं। हमारे
पास पूरी की पूरी प्रतिभाशाली फौज है और इसके साथ ही सस्ता श्रम भी उपलब्ध है जो
दुनिया के शीर्ष कंपनियों को भारत की ओर खींचती है लेकिन कुछ कानून अभी भी
विकासमार्ग में रोड़े बन रहे हैं, पर इसके निराकरण पर भी काम प्रगति पर है।
आज कंपनियाँ एक
देश से कम भी नहीं हैं और एक देश कंपनी के समतुल्य हो गई है क्योंकि वैश्वीकरण ने
विकसित देशों की सरकारों को ऐसा पाठ पढ़ाया कि वे मानने पर मजबूर हो गई कि ये
कंपनियाँ किसी भी तरह इनकी मिल्कियत है और ये इनका इस्तेमाल अपने रणनीतिक-कूटनीतिक
मामलों में करते दिखती भी है|
अगर आपको ध्यान
हो तो रक्षा क्षेत्र में इन सरकारों की प्रत्यक्ष भूमिका सिद्ध होती है| कोई भी
सरकार सीधे हथियार निर्माता कंपनियों से संपर्क न कर उनके सरकारों से समझौता करती
है और तभी उस परियोजना को अमलीजामा पहनाया जाता है और तकनीक के मामलों में तो
हमारी सरकारें अप्रत्यक्ष भूमिका निभा भी रही है|
हम दूसरे देशों
के साथ बेहतर संबंध बनाकर अपनी कूटनीतिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं और इस समय हम
किसी भी देश की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं क्योंकि बंगलादेश, म्यांमार जैसे छोटे
देश भी हमसे अधिक प्रतिस्पर्धी हो रहे हैं लेकिन प्रतिस्पर्धा के डर से हम कोई ऐसा
फैसला नहीं ले सकते हैं क्योंकि इससे हमारे देश की छवि पर असर पड़ता है और यह छवि
इस प्रकार है कि हम दूसरी बार मजबूरी में ही सही लेकिन सस्ता व गलत सामान खरीद
लेते हैं लेकिन एक बार धोखा देनेवाले इंसान से हम दोबारा कोई संबंध स्थापित नहीं करना
चाहते हैं।
अंत में केवल इतना कहना चाहता हूँ कि वैश्वीकरण के कारण हमलोग एक वैश्विक गाँव में रहने को
मजबूर हो गए हैं, जहाँ सभी वस्तुएँ सर्वसुलभ है लेकिन आपको मुफ्त में कुछ नहीं
मिलेगा बल्कि आपको उसकी उचित कीमत अदा कर उसे हासिल करना होगा| विदेश नीति किसी भी
देश के लिए सर्वमहत्वपूर्ण औजार है क्योंकि जरूरत के वक्त रणनीति एक बार विफल हो
सकती है लेकिन अच्छी नीयत से बनाए गए कूटनीति के कारण साथियों की कमी नहीं होती है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आप अपने विचार हमें बताकर हमारी मदद कर सकते हैं ताकि हम आपको बेहतरीन सामग्री पेश कर सकें।
हम आपको बेहतर सामग्री प्रस्तुत करने हेतु प्रतिबद्ध हैं लेकिन हमें आपके सहयोग की भी आवश्यकता है। अगर आपके पास कोई सवाल हो, तो आप टिप्पणी बक्से में भरकर हमें भेज सकते हैं। हम जल्द आपका जवाब देंगे।