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वो दो मिनट

कल दोपहर मैं अपने एक अजीज दोस्त से मिला और उसे देखकर तो पहले बहुत खुश हुआ कि चलो, आज किसी अपने से मुलाकात हुई| उसे देखने पर मुझे अहसास हुआ कि वह थोड़ा मायूस है और शायद वह परेशान भी है लेकिन समय की कमी ने मेरे हाथ बाँधे हुए थे और इस कारण मैं उससे ज्यादा बात न कर पाया| मैंने उससे उसका हालचाल पूछा और फिर उसके काम के बारे में पूछकर उससे अलविदा हो गया| मैं जब उससे थोड़ी दूरी पर था, तो मेरा मन उससे गले लगने को किया क्योंकि वह मेरा अच्छा दोस्त है और एक समय तो हमारी दोस्ती शानदार थी लेकिन मैं नहीं कर पाया| जिंदगी में मैंने जितने काम किए हैं, उससे ज्यादा तो मैंने शुरु करके छोड़ दिया या फिर मानस स्तर पर ही रद्दोबदल हो गया|
मैं उस समय उसी के बारे में सोच रहा था| पता नहीं, उसके बारे में सोचने से क्या मिलनेवाला था या क्या खो सकता था लेकिन उसके चेहरे के सिकन मुझे व्यथित कर रहे थे| वह और मैं दसवीं तक साथ पढ़े और उसके बाद मैं दएवै आ गया और वह मारवाड़ी आ गया| इसके बाद हमारा सामना कम हो गया था लेकिन हम जब भी मिलते थे, गर्मजोशी के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करते थे लेकिन आज जब उसके चेहरे से नाखुशी जगजाहिर हो रही थी, तो मैं केवल उसे देख रहा था|
मैं स्वयं के साथ उसकी तुलना कर रहा था, न जाने क्यों उसकी व्यथा उसकी कमी ही थी, शायद उसके कुछ अरमान थे जो किसी कारण अधूरे रह गए लेकिन मैं केवल उसे वहाँ खड़ा देखने के सिवाय कुछ भी नहीं कर पा रहा था| मैं हम दोनों की कमियों पर सोचते हुए कई बार बिफरा भी कि जो उसके पास है, वह मुझे भी चाहिए और वह चीज शायद मुझे मिल भी जाए लेकिन जो चीज उसे चाहिए, वह शायद उसे उतनी आसानी से न मिले जितनी आसानी से वह चीज मुझे मिल सकती है या फिर मेरे पास वो चीज पहले से उपलब्ध हो| उसकी तबीयत भी थोड़ी खराब थी लेकिन तब भी सीढ़ी पर बैठकर कुछ सोचने की कोशिश कर रहा था|
मैं हँसकर थोड़ी आशंका के साथ उसे मानसिक रूप से अलविदा कह रहा था क्योंकि मेरे पास इसका कोई इलाज न था और शायद कभी नहीं होगा क्योंकि मेरे जैसे इंसान के पास शायद दोस्त तो बहुत हैं लेकिन उन्हें सहेजना मुझे बिल्कुल नहीं आता है|
पर मैं खुश हूँ एक अच्छे कल के आस में, मैं ऊर्जावान हूँ और अपनी क्षमता से उसे अपने जीवन का महत्वपूर्ण सदस्य बना सकता हूँ| मैं उसे अपने जिंदगी के वे दो मिनट तो दे ही सकता हूँ जिसपर केवल उसका और उसका ही हक होगा|

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