ये कैसा अनुवाद???
इस आलेख में मैं
हिंदी में अनुवाद जैसे एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बोलूँगा, हालाँकि इस आलेख का शीर्षक
यह होना चाहिए कि हिंदी का मशीनी अनुवाद कैसे सुधारा जाए लेकिन मशीनी अनुवाद
सुधारने से पहले हमें उन अनुवादकों की कड़ी तैयार करना होगा, जो मानक हिंदी के
शब्दों का सही प्रयोग कर सकें और इनसे भी पहले हमें समाज व सामाजिक मध्यमा
(सामध्यमा) को उन शब्दों के प्रति जवाबदेह भी बनाना होगा क्योंकि अगर एक अनुवादक
के तौर पर मैं अपना एक घंटा ही देता हूँ और मेरे शब्द तथ्यपूर्ण हो, तो मैं उसे
उक्त अंग्रेजी शब्द का सिर्फ अनुवाद न मानकर उसका समानुपाती मानूँगा लेकिन यहाँ
उलटी गंगा ही बह रही है। हमारी सामध्यमा तो हमारी भाषाओँ हेतु कमाल का काम कर रही
है, लेकिन वे तबतक निष्फल रहेंगे, जबतक कि उन्हें और उनके शब्दों पर आधिकारिक मुहर
न लग जाए।
हो यह रहा है कि
लोग इंटरनेट शब्द इस्तेमाल करने के आदी हो गए हैं लेकिन हिंदी के पास इसका
समानुपाती शब्द अंतर्जाल उपलब्ध है लेकिन आप अज्ञानता या किसी अन्य कारण की वजह से
इसका प्रयोग नहीं कर पाते हैं। उसके ऊपर इन तकनीकी कंपनियों का हाल यह है कि ये
जानबूझकर अंग्रेजी के शब्द जबरदस्ती हमारी भाषाओं में ठूस रही है और आप या मैं
प्रत्यक्षतः कुछ भी नहीं कर सकते हैं, जबतक कि सरकारी हथौड़ा इनपर न बरजे। मैं मानता
हूँ कि ये कंपनियाँ विदेशी मूल की हैं और इस कारण उनके पास हमारी भाषाओं का उपयुक्त व्याकरणिक
ज्ञान नहीं है और उनकी क्षमता भी इस कारण सवालों के घेरे में है लेकिन जो लोग इनका अनुवाद कार्य कर रहे हैं, वे भी भाषा के पूर्ण ज्ञान से वंचित होकर केवल कोरा अनुवाद कर रहे हैं जो देखने में ही भद्दा लगता है।
इसके साथ ही
मशीनी अनुवाद के विषय में एक चीज जोड़ूँगा कि ये सभी कंपनियाँ यूरोपीय अनुभव के
साथ भारत आई है और हमारी व शेष एशियाई लिपियाँ उन तथाकथितों से भिन्न है और इनके मशीनी
अनुवाद में यही एक रोड़ा बन रही है।
आशा है कि
हमारी भाषाओं की अनुभवहीनता इन्हें ज्यादा नुकसान न पहुँचाएगी क्योंकि हमारे लोग
ही इस कुकृत्य में इनका साथ दे रहे हैं और मूकदर्शक बने बैठे हैं। मुझे समझ नहीं
आता कि कोई कैसे गलत लिप्यंतरित शब्दों को स्वीकार सकता है और इससे भी बड़ी बात कि
ये हर जगह हो रहा है। हमें समझना होगा कि हमारी भाषाओं के अहित में हमारा ही
नुकसान है और जिस गर्व के साथ हम खुद को भारतीय मानते हैं, शायद इसी भारतीयता के
भाव से हमारी भाषा का विनाश न हो जाए।
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