अकेलापन
मैं पिछले दोदिनी कार्यक्रम से हताश हो चुका हूँ। मैं जानता और
मानता भी हूँ कि हताश होना कोई बड़ी चीज नहीं है और उससे भी बड़ी कि मैं कोई
चर्चित चेहरा नहीं हूँ, वर्ना मेरे नाम से टीवी पर एक-दो कार्यक्रम तो हो ही जाते
लेकिन मैं शुक्रगुजार हूँ कि मुझे ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा।
मैंने आजतक केवल
अपने बारे में ही सोचा है। मैं आजतक जो भी किया, वो सारी चीजें मेरे मनमाफिक थी या
नहीं, इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता और किसी को इसकी परवाह भी नहीं होनी चाहिए। मैं
अबतक कइयों के संपर्क में रहा हूँ और उनमें से अधिकतर मेरे अच्छे दोस्त भी हैं।
लेकिन आज मैं
जिस जगह खड़ा हूँ, वहाँ मेरे साथ कोई नहीं है। मैं बिल्कुल अकेला हूँ और मेरे
अकेलेपन का मर्ज भी मैं ही हूँ। मैं यहाँ केवल नौकरी पाने के लिए ही नहीं आया था।
मुझे कुछ और चीजों की आवश्यकता थी जो यहाँ के अलावा कहीं और उपलब्ध नहीं थी। मुझे
अगर नौकरी मिल भी जाती, तब भी मैं इतना ही दुखी रहता, जितना अभी हूँ लेकिन एक चीज
मेरे पास अधिक हो जाते और वो कार्यालय के मेरे मित्र होते।
मैंने एक प्रस्तुति
भी तैयार कर लिया है और कल से उसका वितरण कार्य शुरु हो जाएगा जब मैं विभिन्न
माध्यमों से कंपनियों से संपर्क करूँगा लेकिन मुझे तो अपनी जिंदगी जीना है और ऐसी
जिंदगी जिसमें मैं ही नहीं हूँ, उसका क्या करूँ।
परसों अजीब लग
रहा था जो कल एक कदम आगे बढ़ गया और आज मैं अवसादग्रस्त लग रहा हूँ। ऐसा भी नहीं
है कि यहाँ मुझे लोग नहीं मिले जिनसे मैं बात कर सकूँ लेकिन क्या, कितना व कैसे
बात करूँ और वार्तालाप के दौरान सामनेवाले की भी तो प्रतिबद्धता होती है। जिंदगी
में आप कितना भी हासिल कर लो, आपको हर कदम अकेले ही लेना पड़ता है। आपके पास
हजारों दोस्त होते होंगे लेकिन वे भी अपनी जिंदगी मैं व्यस्त हैं और वो मेरे लिए
तभी उपलब्ध होंगे जब उनकी समस्याएँ कुछ कम होंगी जो पूर्णतः नामुमकिन है।
मैं अभी बेलुड़
स्टेशन में हूँ और किसी को भी ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि मैं क्यों स्टेशन आया
हूँ क्योंकि मुझे रेल स्टेशन बहुत पसंद है लेकिन आज समस्या कुछ और है। मैं कुछ भी
तय कर पाने में अक्षम हो गया हूँ। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे आगे क्या और
क्यों करना चाहिए। मुझे कैसे की चिंता न आज है और न ही अतीत में इसकी कभी जरूरत
पड़ी लेकिन आज जब मैं क्या और क्यों के पीछे पड़ा हुआ हूँ, तब कैसे भी मेरे लिए गले
की हड्डी बन हुई है।
अगले महीने की सत्ताईस
तारीख को गेट परिणाम आनेवाला है और मैं उसके लिए अतिप्रतीक्षारत हूँ क्योंकि मेरे
पास अब विकल्प सीमित हो गए हैं। मेरे सजाल का काम अच्छा चल रहा है और मुझे आशा है
कि यह सतत रहेगी लेकिन इसके जरिए होनेवाली कमाई का सपना अभी धरा का धरा है। मैं
वैसे भी सजाल कार्य किसी पैसे के लिए नहीं कर रहा हूँ लेकिन यदि कुछ पैसे आ जाते,
तो मैं ज्यादा उत्साहित होकर अपना बेहतर दे पाता और उस पैसे के कारण सजाल की थोड़ी
लोकप्रियता भी बढ़ जाती, पर मुझे अभी इसका कोई विशेष दुख भी नहीं है।
मेरे पास अभी
मेरे अकेलेपन की कोई दवा नहीं नहीं है लेकिन पिछले चालीस मिनट से स्टेशन में बैठने
के कारण मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ लेकिन मैं कबतक इसी तरह अकेले रहकर रोज स्टेशन
आ सकूँगा।
चाहे कुछ भी हो, पर मुझे इस अकेलेपन की दवा का जुगाड़ करना
ही होगा और यह अभी जैसा बिल्कुल नहीं होगा। अतीत में जब भी मुझे ऐसा महसूस हुआ,
मैंने तुरंत खुद को ऐसे कार्यों में व्यस्त कर दिया कि मैं कभी खाली नहीं रह
पाऊँगा और जब मैं खाली नहीं रह पाऊँगा, तो मैं मेरे अकेलेपन को महसूस ही नहीं
करूँगा। पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था जब मैं अपने अंतिमवर्षीय परियोजना पर कार्यरत
था। मैं ऐसे व्यक्ति के समूह में था जिसे न मैं पसंद था और न ही मुझे वह पसंद था।
मैंने उसे शुरु में छवि प्रसंस्करण का सर्वसरल छवि दर्शक का
सुझाव दिया और मैंने कहा कि यही मेरी परियोजना होगी जिसे मैं जमा कराऊँगा। उसे
सॉफ्टवेर का क भी पता नहीं था, तो उसने हाँ बोल दिया लेकिन मेरे दिमाग में
तो कुछ और ही चल रहा था। मैं अलग परियोजना करना चाहता था लेकिन वक्त पर जरूरी
सहायता न मिलने के कारण वह पूरी नहीं हो पायी और मैं इसके लिए किसी को भी दोषी
नहीं मानता हूँ।
यह परियोजना थी:
कार संख्यापट्टी के छवि से उसका कार संख्या निकालना। यह पूरी हो जाती, तो शायद
आजतक मेतलेब मेरे साथ रहता लेकिन कोई भी प्राध्यापक मेरी मदद नहीं कर सके या नहीं
करना चाहते हैं और यह अधूरी ही रही लेकिन आज मैं खुशी के साथ कह सकता हूँ कि मैंने
इसका ८०% भाग पूरा कर लिया है और इसके लिए बधाई का हकदार मेरी तन्हाई है लेकिन यह
परियोजना अगर उस समय पूरी हो जाती, तो मेरे परियोजना मैं भी दम होता और मैं अपनी संपूर्णता से अधिक संतुष्ट रह पाता।
खैर, समय की नाव
पर चढ़के वापस नहीं जा सकता हूँ लेकिन आगे जो होना है, उसकी रूपरेखा तो तय कर ही
सकता हूँ। मैं अभी निश्चय कर रहा हूँ कि मुझे अब किसी दूसरे की जरूरत नहीं पड़ेगी
जो अल्पकालिक होगी और मैं कल से आज जितना अकेलापन भी महसूस नहीं करूँगा।
मैं आज रात से
भावी दिनों के लिए पूर्वकार्यक्रम तैयार रखूँगा जो मुझे अगले दिन करने पड़ेंगे और
कल मुझे कोलकाता की सभी कंपनियों को ऑनलाइन प्रस्तुति भेजना है। वे कंपनियाँ मेरी
प्रस्तुति का क्या करेंगी, उसका तो पता नहीं लेकिन कल १०० कंपनियों को भेज ही
दूँगा।
मैं आपका शुक्रगुजार हूँ कि आपने मेरे इस आलेख को पढ़ने का समय निकाला।
पढ़ने के लिए आपका आभार।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आप अपने विचार हमें बताकर हमारी मदद कर सकते हैं ताकि हम आपको बेहतरीन सामग्री पेश कर सकें।
हम आपको बेहतर सामग्री प्रस्तुत करने हेतु प्रतिबद्ध हैं लेकिन हमें आपके सहयोग की भी आवश्यकता है। अगर आपके पास कोई सवाल हो, तो आप टिप्पणी बक्से में भरकर हमें भेज सकते हैं। हम जल्द आपका जवाब देंगे।