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हमारी भागमभाग भरी जिंदगी


हम सभी ने गोविंदा की फिल्म भागमभाग देखा ही होगा और जिन्होंने नहीं देखा है, वे एक बार तो इसे देख ही सकते हैं क्योंकि हमारी जिंदगी उन किरदारों से कम भी नहीं है। मैं गोविंदा का प्रशंसक हूँ लेकिन मैं इस आलेख में गोविंदा की प्रशंसा करने हेतु नहीं आया हूँ।

मैंने केवल उस फिल्म का नाम लिया है क्योंकि इसका नाम जितना रोचक है, उतना ही नैसर्गिक भी है। यह शीर्षक हमें बताता है कि अगर यह किसी कहानी का नाम है तो इसका किरदार वाकई पूरी कहानी के दौरान एक जगह से दूसरे जगह भागता ही रहेगा। वह किसी तलाश में होगा या फिर कोई उसकी तलाश में होगा और इन दो मुख्य किरदारों के दम पर यह कहानी सरपट दौड़ती रहती है लेकिन मैं यहाँ केवल उन दोनों किरदारों का ही चित्रण नहीं करना चाहता हूँ। मैं अपने इस आलेख को नया आयाम देते हुए इसकी परिधि को वैश्विक करना चाहता हूँ।

वैश्विक करने का तात्पर्य मात्र इतना है कि मैं विश्व के सभी नागरिकों को अपनी इस कहानी का किरदार बनाना चाहता हूँ। कुछ लोगों को ताज्जुब हो सकता है कि वे आखिर बेनामी रूप से ही सही लेकिन मेरी किसी कहानी का किरदार कैसे बन सकते हैं। उन सभी में कोई आम बात होगी, तभी तो मैंने उन सभी को अपनी कहानी का किरदार बनाया है और एक चीज जो विशेष रूप से उल्लेख करना चाहिए कि हाँ, हम सभी, चाहे दुनिया के किसी भी कोने से हो, हममें एक समानता है और वह है हमारी भागमभाग भरी जिंदगी।


मैं मानता हूँ कि हम सभी के कुछ अरमान होते हैं और हम सभी उनको पूरा भी करना चाहते हैं। हमारे जीवन में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनकी ख्वाहिशें पूरी करने के लिए हम दुनिया जहाँ को भूलकर केवल उनके हिस्से को संजोए रखते हैं। हमारे जीवन में कई लक्ष्य भी होते हैं जो हमें पैदा होने के साथ ही बता दिए जाते हैं कि आपको यहाँ इस तरह ही काम करना होगा, वर्ना आप खारिज किए जाओगे। 


इसके कारण हममें से कई डरकर, तो कभी फिसलकर लक्ष्य से दूर हो जाते हैं। हमें डर किसी इंसान के कारण भी हो सकता है लेकिन अधिकतर मामलों में हम खुद के कारण ही कई चीजों से समझौता कर लेते हैं और इसके कारण हम लक्ष्य से दूर हो जाते हैं। हम शायद यह पूर्वकथन कर लेते हैं कि हमारा यह कार्य कभी सफल नहीं होगा और अगर पूरा हो भी गया, तो भी अधूरा ही रहेगा। हम कई बार दूसरों के सकारात्मक जवाब चाहते हैं ताकि हम अपने कार्यों में सफल हो सके लेकिन दुनिया में जीवों का एक प्रकार ऐसा भी है जो इन सबकी परवाह नहीं करता है।

जी हाँ, मैं सच कह रहा हूँ। आपको विश्वास न हो रहा हो, तो जरा अपने दिमाग के ढक्कन पर जोर डालकर सोचे कि अभी आपके मस्तिष्क में जितने लोगों की छवि बन रही है, उनमें से कितने लोग आपकी मदद करने में समर्थ थे और कितनों ने आपकी मदद किया।

मैं आपको एक चीज कहना चाहता हूँ कि हमारे जिंदगी में कुछ लोग होते हैं जिनकी अहमियत हमारे जिंदगी में दस पैसे की भी नहीं होती है लेकिन उनके कार्य सदियों तक हमें प्रभावित व प्रेरित करते हैं। मैं उनके प्रभाव व प्रेरणा के प्रकारों का जिक्र नहीं करूँगा क्योंकि यह पूरी तरह किसी व्यक्ति के मनोस्थिति पर भी निर्भर होती है।

लेकिन वो लोग जो दुनिया में गिने जा सकते हैं, वे अपना काम निरंतर करते रहते हैं। वे किसी चीज की परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य को पाना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि उनके कार्य केवल उन्हें फलित करेंगे लेकिन वे ऐसा करते रहते हैं और तबतक करते रहते हैं, जबतक वे अपनी सीमा नहीं छू लेते हैं। उनके कार्य भले ही समाज को नयी दिशा देते हो लेकिन यह कहाँ तक जायज है कि हम उस लक्ष्य को पाने के लिए खुब मेहनत करें लेकिन हम हमारी जिंदगी ही नहीं जी सकें जो हमें एक ही बार मिलती है।

यह बिल्कुल सही नहीं है कि हम अपने लक्ष्यों को पाने हेतु अपनी जिंदगी को ही भूल जाना पसंद करते हैं। हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर खुद की मनोस्थिति को तो संतुष्ट कर देते हैं लेकिन क्या हमारा जीवन इसी से संतृप्त हो जाता है। हम अपने लक्ष्य हासिल कर लेते हैं लेकिन इस एक लक्ष्य को हासिल कर लेने से ही हम सफल हो जाते हैं।

हम आखिर कब समझेंगे कि जिंदगी कोई लक्ष्य नहीं है। जिंदगी एक जीने की कला है जो हमें एक ही बार मिलती है। हर किसी को एक ही बार मौका मिलता है कि वो इस धरती पर आकर इसके सौंदर्य को निहारे और इसकी सुंदरता के किस्से दूर तक पहुँचाए। हम जिंदगी को जीने के लिए यहाँ आए हैं, नाकि कोई लक्ष्य पाने या परीक्षा देने। हम जिंदगी के हर हिस्से में अकारण ही परीक्षार्थी बन जाते हैं और इसके कारण हमें कई दफा खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।

अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा है, तो जरा नजदीकी अस्पताल में जाकर देखिए कि वहाँ लोग कैसे अपने जीवन की दुहाई देकर बेहतर जिंदगी जीना चाहते हैं और पैसे खर्चकर भी कभी-कभी वह नसीब नहीं होती है।

हम परेशानियों से दो-चार होकर समझौता कर लेते हैं लेकिन हम उनसे छुटकारा नहीं पाना चाहते हैं। हम आखिर क्यों किसी ऐसी चीजों के पीछे पड़ जाते हैं जो नश्वर होती है। हम उनके पीछे पड़ जाते हैं और उन्हें हासिल करना चाहते हैं जिनकी अहमियत पलभर की होती है।

और इसके साथ हम उन्हें पीछे छोड़ आते हैं जो हमें एक आयाम देते हैं और उसी तरह हमें परिभाषित भी करते हैं। हम उन्हें अपने साथ नहीं रखते या रख पाते हैं जो हमारे लिए अत्यावश्यक होते हैं। हम कई दफा तो यही तय कर पाते हैं कि हमारे लिए उस समय ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है और यही समस्या जीवन के अंत तक लागू रहती है।

आज हम ऐसी जिंदगी जीने को विवश हो गए हैं जहाँ हम ही नहीं हैं। हम कहीं खो से गए हैं क्योंकि जो प्रमुखता हमें मिलनी चाहिए थी, वो अब ऐसी चीजों को मिल रही है जो हमारे बगैर अधूरे हैं। मैं इन सरकारों, संस्थाओं, कंपनियाँ आदि सभी ऐसे निकायों की बात कर रहा हूँ जिन्होंने हमें इतना तेज बना दिया है कि हम कहीं ठहर गए हैं। यहाँ ठहरने का आशय यह है कि हम हर बार क्यों अपने को एक ही अवस्था में पाते हैं जब हमें किसी चीज की जरूरत होती है। हम क्यों द्वंद्व में फँसकर रह जाते हैं कि हम तो कई बार सही फैसले भी नहीं ले पाते हैं और ये सरकारें, संस्थाएँ आदि हमारे पीछे ऐसे पड़ जाती है कि हम जैसे इंसान नहीं हैं, हम तो कोई यंत्रानव अर्थात् रोबोट हैं जिसमें जान ही नहीं होती है। आप इन यंत्रानव से जितना भी मेहनत करा लो, कोई शिकायत नहीं करेंगे। इन्हें बस अपने खुराक की आवश्यकता होती है और आवेशन (अंग्रेजी: चार्जिंग) द्वारा पूरी हो जाने पर वह भी मस्त चंगे होकर अपनी भूमिका निभाते रहते हैं।

लेकिन हम यंत्रानव नहीं हैं। हम इंसान हैं। हममें भावनाएँ हैं। हमारी अपनी जिंदगी है जो एक ही बार निसार होती है। हमें तो दोबारा मौका भी नहीं मिलता है। हम जितने बार छटपटा ले लेकिन जो वक्त चला जाता है, वो वापस नहीं लौटता है। आप जानना चाहते हैं कि ऐसा क्यों होता है, तो इसका जवाब है कि हम तब उचित फैसला नहीं लेते हैं और उसका अहसास हमें तब होता है जब हम बिस्तर के कोने पकड़े रहते हैं कि कोई आकर हमें यहाँ से ले चले, जैसेकि वो बिस्तर अभी आपकी नाव बन गई हो। हम रोज ऐसा सोचते हैं कि काश! ऐसा हो जाता, तो कितना बेहतर होता लेकिन हम तब अपने विचारों को दरकिनार कर देते हैं जो हमें रोज संकेत दे रही होती है कि हमें ऐसा करना चाहिए और ऐसा करने से ही हमें हमारी जिंदगी में अपार खुशियाँ मिल सकती है। परंतु हम ऐसा करने में असफल ही रह जाते हैं।

आखिर में आपसे यही कहूँगा कि खुश रहना सीख लीजिए क्योंकि यही खुशी आपको जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर अहसास कराएगी कि आपने अपनी जिंदगी में वह सब किया जिसके आप हकदार थे। आपने वो सब अपने दिल से किया और आपकी तमन्ना अभी भी जिंदा है। इस तरह आप फिर से एक नया मुकाम हासिल कर सकते हैं जिससे आप अपनी खुशियाँ दोबारा पा सकते हैं क्योंकि हँसना जिंदगी का ही दूसरा नाम है।

हाँ, इस तरह की जिंदगी जीने से आपको भारत रत्न, अर्जुन या द्रौणाचार्य पुरस्कार आदि नहीं मिलेंगे लेकिन आप अपनी जिंदगी के सभी गुजरे सालों से संतुष्ट रहेंगे क्योंकि आपने वही किया जो आप चाहते थे और जो आपका दिल चाहता था। 
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