कुमारवाणी पर आपका स्वागत है।

विचारों का कटाव

हम अपनी निजी जिंदगी में इस कदर व्यस्त हैं कि हमारा ध्यान समाज की उन्नति से हट जाता है| हम समाज से कटने लगते हैं| आप बोल सकते हैं कि इसमें आपका पूरा दोष नहीं है लेकिन हम इसके भागीदार तो जाने-अंजाने बन ही जाते हैं|
मैं मानता हूँ कि हम सभी रोटी की तलाश में अपने घर से दूर किसी नए बसेरे में अपनी दुनिया बसाते हैं और इसकी सुरक्षा में दिन-रात बिता जाते हैं लेकिन हम जहाँ रहते हैं या हमारी पैदाइश जहाँ की होती है, हम धीरे-धीरे उनमें से किसी एक को चुनने लगते हैं| ऐसा बिल्कुल गलत भी नहीं है जब आपको इनमें से किसी एक को चुनना पड़े लेकिन जब बात अस्मिता की आती है, तब दिक्कत हो जाती है|
आप द्वंद्व में पड़ जाते हैं कि किसे चुनूँ, उसे जहाँ मैं पैदा हुआ या जहाँ मेरा रोजगार है और अलबत्ता ये सबके साथ होता है और हम अंततः खाली हाथ ही रहते हैं| बड़े शहर के बड़े ख्यालों ने हमें बस इतना सिखाया है कि आप खुश रहना सीख जाओ, बाकी काम चलते रहेंगे|
कभी-कभी किसी एक की नासमझी भी सबपर भारी पड़ जाती है और शायद इस कारण भी हम अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि हम जिस समाज में रहते हैं वह हमारा ही हिस्सा है| हम उसके बिना और वो हमारे बिना अधूरे हैं| हमें समाज की बेहतरी के लिए अपने हाथ बढ़ाने ही होंगे और ऐसा किसी चमत्कार के कारण नहीं होगा|
सरकारी भूमिका भी यहाँ महत्वपूर्ण होती है क्योंकि आप किसी भी शहर में चले जाओ| आपको सरकार की तरफ से सड़क, बिजली, पानी आदि मौलिक सुविधाएँ पहले से मिली होती है और आगे कुछ उम्मीद रख नहीं सकते हैं क्योंकि आपका मानना है कि आप एक आम नागरिक है और आप तमाशा देखने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते हैं| आप इस वक्त तय करते हैं कि आप तमाशा देखें या न देखें और इसी उधेड़बुन में आप तमाशा छोड़ बाहरी दुनिया के ऐसे तत्वों से मिलते हैं जो अपरिचित तो होते ही हैं लेकिन उनकी प्रगाढ़ता आपको रमणीय लगती है| आप आगे बढ़ने लगते हैं लेकिन आप तब भी एक अनसुलझी पहली बुझा रहे होते हैं और तब आप फिर भी सिवाय तमाशा देखने के कुछ नहीं कर पाते हैं|
हम करना बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन कहाँ से शुरुआत करें, यहीं खोजने में सालों बिता देते हैं| हम तब भी अपने समाज की तरक्की में अपने हाथ बँटाना चाहते हैं और शायद अगले कुछ वर्षों पश्चात् हम ऐसा करने में सफल भी हो जाते हैं लेकिन तब भी हमारे हाथ नई चुनौतियों से हाथ मिलाने से हिचकते हैं| हमें एक अंजाना डर लगा रहता है कि कहीं हम असफल न हो जाएँ लेकिन हममें से कुछ तब भी अपना प्रयास जारी रखते हैं और उनमें से कुछ सफल भी होते हैं|
लेकिन हम इतने बेफिक्र तो कभी नहीं थे कि हम उन सभी का नाम जान सकें और ये दुनिया और हम केवल उन्हीं लोगों का नाम जान पाते हैं जो सफल होते हैं| ऐसा भी नहीं है कि हम उन असफल लोगों के नाम नहीं जानना चाहते हैं लेकिन हम उनको क्यों याद रखें जब उनसे हमें कोई लाभ नहीं होता है| हम उन सफल लोगों के नाम इसलिए याद रखते हैं ताकि हम भावी पीढ़ियों को बता सकें कि इन बंदों ने अच्छे कामों का पुलिंदा तैयार रखा है और अब आपको इनकी गठरी संभालना है|
अब आप हमारे तारणहार हैं लेकिन एक शर्त के साथ कि आपको हमारी सोच के साथ तालमेल बनाए रखना होगा, वर्ना आपको पदमुक्त होना पड़ सकता है|
और समस्या यहाँ से शुरु हो जाती है। कभी आप, तो कभी अन्य किसी कार्य के निष्पादन में रूकावट बन जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि हम उन कामों को निपटाना नहीं चाहते हैं लेकिन हमारी ऐसी जीवनशैली ही हो गयी है जहाँ हम टाँग अड़ाने में सकेन्ड भी नहीं लेते हैं।
हम कभी-कभी अपने सोच के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते हैं और इसके कारण हमारे संबंध कई बेकार मुद्दों के कारण खराब भी हो जाते हैं लेकिन हम तब भी जीना नहीं छोड़ते है क्योंकि आखिरकार जीना इसी का ही तो नाम है।
हम अपनी जिंदगी में हर चीज हासिल कर लेना चाहते हैं और वह जितनी जल्दी हो जाए, उतना अच्छा होगा क्योंकि तब हमारे कुछ समय सामाजिक प्रतिष्ठा स्थापित करने में जाएँगे जो अंततः पुरस्कारों, सरोकरों व नाम-पदवी की आकांक्षा दिलाएँगे।
हम इस दौरान सबकुछ कर लेना चाहते हैं लेकिन हम जिंदगी जीना क्यों भूल जाते हैं। हम काफी कुछ करते हैं ताकि हम व हमारे परिजन आबाद रह सकें और ऐसा करने में भी हम सफल हो ही जाते हैं लेकिन हमारी आत्मसंतुष्टि की क्षुधा का हाल बेहाल रहता है। हम तबतक यंत्रानव (अंग्रेजी: रोबोट) बन चुके होते हैं। हम अपनी भावनों को छिपाना जान जाते हैं। पता नहीं, इससे क्या पाते हैं लेकिन हम ऐसे लोगों से अपनी संवेदनाएँ दूर रखने लगते हैं जो हमारे लिए अतिप्रिय होते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं मानिएगा कि आपके चाहनेवाले के पास आपके लिए समय नहीं है।


उनके पास तो समय होता है और वो आपके लिए उपलब्ध भी रहते हैं लेकिन हम अपनी भावनाओं के द्वार को ताले से जड़कर उसकी चाभी को ऐसी जगह फेंक आते हैं जहाँ का रास्ता हम भूल भी जाते हैं। हम आखिर अपनी भावनाओं को क्यों नहीं दिखा पाते हैं और यहाँ महिला-पुरुष का मुद्दा बिल्कुल नहीं है। यह पूर्णतः अंतर्वैयक्तिक है जो किसी भी दो इंसानों के बीच संभव है।
मैं भी ऐसा ही हूँ। मैं अपनी बात सही तरीके से न बता सकता हूँ और न ही समझा सकता हूँ। मेरे साथ तो कई बार ऐसे मौके भी आए जब मुझे लोगों को कई बार समझाना पड़ा कि मैं ऐसे ही सोचता और जीता हूँ लेकिन होता वही है- ढाक के तीन पात। वैसे भी एक कहावत है कि लोग आपसे वही और उतना ही सुनना चाहते हैं जितनी की उनको जरूरत होती है। वे किसी भी चीज को तभी स्वीकारते हैं जब उन्हें उसकी जरूरत होती है।
मैं लोगों तक अपनी भावनाएँ पहुँचाने में असमर्थ रहा हूँ और कई बार दुखी भी हुआ हूँ कि यार, मैं कोई अंतरिक्षवासी तो नहीं हूँ ना लेकिन मैं अब बदल रहा हूँ। मैंने अपनी प्रसंस्करण गति (अंग्रेजी: प्रॉसेसर गति) बढ़ाकर अपनी दक्षता बेहतर कर रहा हूँ। हाँ, इसे पूरा होने में समय लगेगा लेकिन मैं इसके बीटा संस्करण को आजमाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा हूँ।
मुझे इन विचारों के कटाव में बहना अब पसंद नहीं है। मैं किनारों के बहाव के साथ अधिक दूर भी नहीं जा सकूँगा। मैं इसीलिए अब तैरना चाहता हूँ और वो भी गहरे पानी में (कम से कम १० फुट गहरी नदी) में और ऐसे भी मैं पिछले तीन साल से नदी में तैर भी नहीं पाया हूँ और यहाँ बेलुड़ में अभी यह लिख रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि मैंने तैरना भूला नहीं है लेकिन इस तैराकी के दौरान मैं अकेला भी नहीं रहना चाहता हूँ, वर्ना इससे बेहतर तो मैं कटाव के साथ था यानि किनारे के पानी के साथ ही ठीक था।
पर मैं बदलूँगा और इस कदर बदलूँगा कि मैं इस दुनिया का सबसे सुखी इंसान बन जाऊँगा। मेरे लिए सुख और खुशी के कोई पैमाने नहीं है और न ही इन्हें मापने के औजार, वर्ना मैं अभीतक का सबसे दुखी इंसान साबित हो चुका होता!!!
लेकिन मेरी एक दोस्त ने कहा कि जहाँ चाह होती है, वहाँ राह होती है और मैं उसकी उक्ति का शब्दशः अनुसरण करनेवाला हूँ।

विशेष: यह आलेख तीन महीने पहले लिखा गया था लेकिन उस समय इसे प्रकाशित करने हेतु अयोग्य मानकर निरस्त कर दिया गया। मैं अभी बेलुड़ में अपने घर से दूर हूँ, तो इस आलेख की प्रासंगिकता मानकर इसे पुनर्प्रकाशयोग्य बनाकर आपके लिए प्रस्तुत किया गया है।

टिप्पणियाँ

यहाँ मानक हिंदी के संहितानुसार कुछ त्रुटियाँ हैं, जिन्हें सुधारने का काम प्रगति पर है। आपसे सकारात्मक सहयोग अपेक्षित है। अगर आप यहाँ किसी असुविधा से दो-चार होते हैं और उसकी सूचना हमें देना चाहते हैं, तो कृपया संपर्क प्रपत्र के जरिये अपनी व्यथा जाहिर कीजिये। हम यथाशीघ्र आपकी पृच्छा का उचित जवाब देने की चेष्टा करेंगे।

लोकप्रिय आलेख

राजपूत इसलिए नहीं हारे थे

100 Most Effective SEO Strategies

कुछ गड़बड़ है

अतरंगी सफर का साथ

हिंदी या अंग्रेजी क्या चाहिए???

शब्दहीन

नामकरण- समीक्षा