इतने दिनों से लिखना नहीं छोड़ा था- एक माफीनामा
मैं, कुमार पूरे एक महीने के अंतराल के बाद वापस आ गया हूँ। मैं मानता हूँ कि पिछले एक महीने में मैंने अपनी कोई रचना प्रकाशित नहीं किया और न ही सामध्यमाओं पर ही उपलब्ध हो पाया।
मैं इसके लिये खेद जताना चाहता हूँ और तहेदिल से माफी भी माँगता हूँ क्योंकि मैं एक तो प्रकाशन से दूर हो गया, दूसरा कि मैं मानक हिंदी से जुड़े स्पष्ट नियमों पर कार्यरत था। इसपर अभी भी कार्य चलमान है लेकिन पिछले एक महीने की कार्यबद्धता ने कुछ नियमों को स्पष्ट जरूर कर दिया है जिसे यहाँ प्रकाशित किया जायेगा।
हाँ, मैंने प्रकाशित करना छोड़ दिया था लेकिन लिखना नहीं छोड़ा। मैं रोज कुछ-न-कुछ शीर्षकों पर अपनी कहानियाँ गढ़ रहा था, कुछ न्यौते भी भेज रहा था, कुछ उलझनों में भी व्यस्त हूँ क्योंकि जिनके पास ये नहीं है वे इंसान कहलाने के भी लायक नहीं हैं।
खैर, अभी एक प्रकाशन नीति पर भी कार्यरत हूँ जिसके अनुसार हर तीन दिन (अधिकतम सात दिन) में मेरी एक रचना प्रकाशित होगी। मैं मानता हूँ कि मेरा पाठक वर्ग अभी भी तैयार नहीं है और मुझे अभी लिखने के अतिरिक्त अपने चिट्ठे के पाठक वर्ग बनाने पर भी जोर-शोर से ध्यान देना होगा, नहीं तो यह भी अंतर्जाल पर उपलब्ध अनगिनत सजालों की तालिकाओं में शामिल होने से नहीं बचेगी।
इसके अलावा मैं अंग्रेजी लेखन की सोच रहा हूँ और यह बिल्कुल तात्कालिक है। मैं अभी बंगला, तेलुगु व गुजराती पर काम कर रहा हूँ और आशा है कि अगले तीन-चार महीनों में मैं इनमें लिख सकूँगा और मेरे आलेख इनके अखबारों या सजालों पर प्रकाशनयोग्य बन सकेंगे।
मैं स्पष्ट कर दूँ कि कुमारवाणी के सभी पिछले आलेखों के पुनर्लेखन पर काम करके इन्हें पुनर्प्रकाशित किया जायेगा क्योंकि इन्हें मानक हिंदी के आधार पर स्थापित करना है। इसके अलावा मैं सिनेमाई समीक्षा पर भी हाथ आजमाने की सोच रहा हूँ। मेरे पास कुछ तालिकायें हैं जो कुछ विशिष्ट मामलों में समीक्षायोग्य साबित होती हैं।
इस महीने का मेरा प्रथम आलेख आज शाम प्रकाशित होगा जिसका नाम है- प्रसिद्धि का हमारे जीवन में महत्व
यह पृष्ठ अंतिम बार 14 अप्रैल 2017 (1700 भामास) को अद्यतित हुयी थी।